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10 महाविद्या की दूसरी शक्ति देवी तारा है। तारा देवी हिमाचल प्रदेश के शिमला में स्थित है। यह मंदिर 250 साल पुराना है। मान्यता के अनुसार, तारा देवी को पश्चिम बंगाल से सेन साम्राज्य के राजा लाये थे। बाद में राजा भूपेंद्र सेन ने इस मंदिर को लकड़ी एवं वैष्णव तरीके से तैयार करवाया था। तारा देवी भक्तों को सभी दुखों से तारने वाली है। देवी तारा को हिंदू धर्म की ही भांति बौद्ध धर्म में भी अत्यंत पूजनीय माना गया है। शिमला के शोघी इलाके की ऊंची पहाड़ी पर मां तारा विराजमान है।
मान्यता है कि जो भी भक्त मां तारा के दरबार में पहुंचता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। अपनी दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध ये मंदिर हिमाचल के लोगों के लिए आस्था का केंद्र हैं। तारादेवी मंदिर शिमला से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर हैं। शोघी की पहाड़ी पर बना ये मंदिर समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध है।
तारा देवी का इतिहास करीब 250 साल पुराना है। कहा जाता है कि एक बंगाल के सेन राजवंश के राजा शिमला आए थे। एक दिन घने जंगलों के बीच शिकार खेलने में हुई थकान के बाद राजा भूपेन्द्र सेन को नींद आ गई। सपने में राजा ने मां तारा के साथ उनके द्वारपाल श्री भैरव और भगवान हनुमान को सपने में देखा। सपने से प्रेरित होकर राजा भूपेन्द्र सेन ने 50 बीघा जमीन दान कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया।
मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद मां तारा की मूर्ति को वैष्णव परंपरा के अनुसार स्थापित किया गया। ये मूर्ति लकड़ी से तैयार करवाई गई थी। कुछ समय बाद राजा भूपेन्द्र के वंशज बलवीर सेन को भी सपने में मां तारा के दर्शन हुए। इसके बाद बलवीर सिंह ने मंदिर में अष्टधातु से बनी मां तारा देवी की मूर्ति स्थापित करवाई और मंदिर का पूर्ण रूप से निर्माण करवाया।
कहते हैं कि माता तारा, दुर्गा मां की नौवीं बहन है। तारा, एकजुट और नील सरस्वती माता तारा के तीन स्वरुप हैं। बृहन्नील ग्रंथ में माता तारा के तीन स्वरूपों के बारे में बताया गया है। सबको तारने वाली मां तारा की पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों की धर्मों में की जाती है। नवरात्रों में माता के दरबार में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। नवरात्र में माता की दिव्य मूर्ति के दर्शन पाने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं।
तारा देवी मंदिर से कुछ दूरी पर शिव कुटिया बनी हुई हैं। घने जंगल में स्थित ये मंदिर भगवान शिव के कैलाश में होने का आभास कराता है। जंगल के अन्य हिस्सों की तुलना में इस मंदिर का तापमान कम होता है। माना जाता है कि कई साल पहले एक संत यहां ध्यान किया करते थे। ठंड में वह संत केवल एक लंगोट में ही यहां तपस्या करते थे।
पहाड़ी शैली की वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति के रूप में, तारा देवी मंदिर का पूरी तरह से पुनर्निर्माण किया गया है क्योंकि निर्माण में इस्तेमाल की गई लकड़ी लंबे समय तक हवा में रहने के कारण अपनी बनावट बदल चुकी थीं। मंदिर को उसके मूल स्वरूप में बहाल करने में 6 करोड़ रुपये से अधिक का लागत आई। आप लोग एक पवित्र स्थान पर सोने और चांदी का भारी उपयोग भी देखेंगे। इस धार्मिक स्थल का एक और आकर्षक हिस्सा शिमला के शांत वातावरण में इसकी शांति है। यहां पर हर जगह सकारात्मकता का आभास होता है।
हवाई मार्ग - यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जुब्बरहट्टी हवाई अड्डा है, जो गंतव्य से 22 किमी की दूरी पर है। वहीं से आप कैब या टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते है।
रेल मार्ग - यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन शिमला है। चंडीगढ़ से आने वाले लोग कालका रेलवे स्टेशन से तारा देवी स्टेशन तक टॉय ट्रेन की सवारी का भी आनंद ले सकते हैं।
सड़क मार्ग - तारा देवी मंदिर तक पहुंचने का दूसरा रास्ता शोघी से है, जो सड़क मार्ग से शहर के सभी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। कई निजी और सार्वजनिक स्वामित्व वाली बसें उपलब्ध हैं। आपको कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग से गुजरते हुए भी मंदिर के दर्शन करने का मौका मिल सकता है।
6 - जटोली शिव मंदिर, सोलन
मंदिर का समय- जटोली शिव मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है और शाम 6 बजे बंद होता है।
भगवान शिव ने त्रिशूल के वार से खत्म की जटोली की पानी की समस्या, 39 सालों में हुआ मंदिर निर्माण
जटोली के शिव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में लगे पत्थरों से डमरु जैसी आवाज आती है। साथ ही ये दावा भी किया जाता है कि ये एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। ये मंदिर हिमाचल प्रदेश से सोलन में स्थित है। दक्षिण द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 111 फुट है। मंदिर का भवन निर्माण कला का एक बेजोड़ नमूना है। मान्यता है कि सावन में शिव की आराधना से ना सिर्फ सारे पापों का नाश होता बल्कि शिव का आशीर्वाद भी मिलता है।
मंदिर से जुड़ी खास बातें
जटोली मंदिर, राजगढ़ रोड पर स्थित हैं, और यह सोलन से लगभग 8 किमी दूर है। जटोली शिव मंदिर में एक हैरान करने वाली बात ये है कि इसके पत्थरों को थपथपाने से डमरू की आवाज आती है। इस मंदिर को बनाने में पूरे 39 साल का समय लगा था। मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा एक विशाल सोने का कलश भी स्थापित है, जो इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है।
भगवान शिव ने यहां किया था प्रवास
पौराणिक कथा के अनुसार, भोले बाबा भी यहां आए थे और कुछ समय के लिए यहां रहे थे। बाद में 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस नाम के एक बाबा यहां आए। जिनके मार्गदर्शन और दिशा- निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। साल 1974 में उन्होंने ही इस मंदिर की नींव रखी थी। हालांकि 1983 में उन्होंने समाधि ले ली, लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य नहीं रुका। इसका कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी। इस मंदिर को पूरी तरह तैयार होने में तकरीबन 39 साल का समय लगा।
लोकमत है कि जटोली में पानी की समस्या थी। जिससे राहत दिलाने के लिए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। इसके बाद त्रिशूल के प्रहार से जमीन से पानी निकाला। तब से लेकर आज तक जटोली में कभी भी पानी की समस्या नहीं हुई। कहते हैं कि इस पानी को पीने से गंभीर से गंभीर बीमारी भी ठीक हो सकती है।
जटोली शिव मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
भगवान शिव को समर्पित जटोली मंदिर का इतिहास कई शताब्दियों तक फैला हुआ हैं। मंदिर का नाम जटोली हिंदी शब्द जटा से लिया गया है, जिसका अर्थ है जटा, जो भगवान शिव की जटाओं की प्रतीक हैं। पिछले कुछ सालों में मंदिर में कई जीर्णोद्धार हुए हैं, जिनमें से सबसे हालिया पुनर्निर्माण 20वीं शताब्दी के अंत में पूरा हुआ, जिससे यह प्राचीन परंपरा और आधुनिक शिल्प कौशल का मिश्रण बन गया।
कैसे पहुंचे मंदिर
हवाई मार्ग - जटोली शिव मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा शिमला है। यहां से कैब या टैक्सी से आसानी से सोलन पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन शिमला है। स्टेशन से आप मंदिर तक के लिए टैक्सी कर सकते है।
सड़क मार्ग - जटोली मंदिर पहुंचना आसान है। दिल्ली, पंजाब और हरियाणा आदि राज्यों से सोलन के लिए बस भी चलती है। दिल्ली- कश्मीरी-गेट से हिमाचल रोडवेज बसें भी चलती है।
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