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पौराणिक ग्रंथों में मां जगत जननी भगवती के कई स्वरूपों का वर्णन मिलता है। इनमें दस महाविद्याओं के बारे में भी जानकारी मिलती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार दस महाविद्याओं में काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, मातंगी, कमला और बगलामुखी देवी के नाम हैं। इन्हीं दस महाविद्याओं में से एक देवी बगलामुखी को हरिद्रा(हल्दी) के रंग जैसी वस्तुएं बहुत प्रिय हैं जिसके चलते इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहा जाता है।
वैसे तो भारत में पीतांबरा देवी के कई मंदिर और स्थान हैं, लेकिन इनमें से एक सिद्ध और प्रसिद्ध स्थान मध्यप्रदेश के दतिया जिले में भी है। जिसे पीताम्बरा सिद्ध शक्ति पीठ के नाम से जाना जाता है।
क्या है पीतांबरा मंदिर की मान्यता:
मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित माता पीतांबरा का ये मंदिर अपने आप में अनोखा और चमत्कारी मंदिर है, इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां विराजमान देवी दिन में 3 बार अपना स्वरूप बदलती हैं। साथ ही ये भी मान्यता है कि इस स्थान पर आने वाले की मुराद जरूर पूरी होती है और उसे राजसत्ता का सुख मिलता प्राप्त होता है। इसलिए इस मंदिर में विराजमान देवी को राजसत्ता और न्याय की देवी भी कहा जाता है।
की जिसकी स्थापना 1935 में स्वामीजी के द्वारा की गई। ये चमत्कारी धाम स्वामीजी के जप और तप के कारण ही एक सिद्ध पीठ के रूप में जाना जाता है। ये मंदिर इतना प्रसिद्ध और विशाल है कि यहां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और राजपरिवार से जुड़ी राजमाता विजयाराजे सिंधिया सहित कई नामचीन लोग माता से आशीर्वाद लेने के लिए आते रहे हैं। खास बात यह है कि यहां माता का दरबार नहीं सजाया जाता बल्कि भक्तों को मां पीतांबरा के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से होते हैं।
दिन में तीन बार बदलता है माता का स्वरूप
इस मंदिर में किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी करना वर्जित है। कहा जाता है कि मां पीतांबरा देवी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं। मां के दशर्न से सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती हैं। पीताम्बरा पीठ में देश से ही नहीं, विदेशों से भी लोग अनुष्ठान करने आते हैं। मान्यता है कि किसी भी प्रकार का कष्ट हो, यदि मां पीताम्बरा का अनुष्ठान किया जाए तो सभी प्रकार की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के साथ पूरे वर्ष भर पीताम्बरा पीठ में राजनेताओं से लेकर आम भक्तों तक की भीड़ इस मंदिर में लगी रहती है।
दुनिया में मां धूमावती का एकलौता मंदिर
पीताम्बरा पीठ के परिसर में ही मां धूमावती देवी का भी मंदिर है। ये मंदिर विश्व में धूमावती देवी का एक अकेला मंदिर है। कहा जाता है कि जब इस मंदिर में में मां धूमावती की स्थापना हो रही थी तो ऐसा करने के लिए कई लोगों ने स्वामीजी महाराज को ऐसा करने से मना किया था। लेकिन स्वामी जी ने कहा कि 'मां का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए है, भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं। इसलिए उनकी आराधना करना चाहिए और इस प्रकार यहां धूमावती माता की स्थापना हो गई।। इस मंदिर में मां धूमावती की आरती सुबह-शाम होती है, लेकिन भक्तों के लिए धूमावती का मंदिर शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे के लिए खुलता है। मां धूमावती को नमकीन पकवान, जैसे- मंगोडे, कचौड़ी व समोसे आदि का भोग लगाया जाता है। मां पीताम्बरा बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है।
मां की स्थापना से जुड़ी पौराणिक कथा
साल 1935 के आसपास यहां एक घनघोर जंगल हुआ करता था, उस वक्त एक महाराज यहां आए और उन्होंने जंगल के अंदर एक पूर्व और अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर में रुके। जंगल में स्थित इस मंदिर को वन खंडेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था। जानकारी के अनुसार ये शिवमंदिर महाभारत कालीन है जिसे पांडवों ने यहां स्थापित किया था। जनश्रुति है कि पांडवों द्वारा शिवजी की स्थापना से यह मंदिर अत्यंत सिद्ध है इसलिए अश्वत्थामा यहां भोलेनाथ की पूजा करने आता है लोगों का तो यहां तक मानना है कि आज भी अश्वत्थामा यहां पूजा करने आते हैं। इसके बाद आगे चलकर उन स्वामी जी ने यहां मां पीताम्बरा और मां धूमावती की स्थापना कराई।
पीतांबरा शक्ति पीठ से जुड़ा चमत्कार
पीतांबरा पीठ की शक्ति का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि साल 1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया तो दूसरे देशों ने भारत को सहयोग देने से मना कर दिया था। तब तात्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को किसी ने दतिया के पीतांबरा पीठ में यज्ञ करने की सलाह दी। उस समय पंडित नेहरू दतिया आए और देश की रक्षा के लिए पीतांबरा पीठ में 51 कुंडीय महायज्ञ कराया गया। इस यज्ञ में कई अफसरों और फौजियों ने भी आहुति डाली, कहा जाता है कि 11 वें दिन अंतिम आहुति डालते ही चीन ने बार्डर से अपनी सेनाएं वापस बुला लीं। उस समय बनाई गई यज्ञशाला पीठ में आज भी मौजूद है। उसके बाद जब भी देश के ऊपर संकट आया है, तब गोपनीय रूप में पीतांबरा पीठ में साधना व यज्ञ का आयोजन होता है। केवल भारत-चीन युद्ध ही नहीं, बल्कि 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान भी विशेष अनुष्ठान किया गया। कारगिल युद्ध के समय भी अटल बिहारी वाजपेयी की ओर पीठ में एक यज्ञ का आयोजन किया गया और आहुति के अंतिम दिन पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा। भारत-चीन युद्ध के दौरान पूजा के लिए बनाई गई ये यज्ञशाला आज भी परिसर में स्थापित है। पंडित परिसर की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार जब देश पर किसी तरह की परेशानी आती है तो मंदिर में गोपनीय रूप से मां बगुलामुखी की पूजा की जाती है। बताया गया कि चीन के अलावा 1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 2000 में कारगिल में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी मां बगुलामुखी की गुप्त साधना की गई थी। इसका ही परिणाम रहा कि दुश्मनों की हार हुई।
भारत में बगलामुखी के तीन प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर
भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर और शक्तिपीठ माने गए हैं, जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है।
मंदिर का समय
दतिया का ये प्रसिद्ध मंदिर सुबह 5:00 बजे खुलता है और रात्रि 11:00 बजे बंद होता है। सुबह की आरती सुबह 7:00 बजे और शाम की आरती शाम को 9:00 बजे की जाती है।
दतिया मंदिर कैसे पहुंचे?
हवाई मार्ग- दतिया मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर हवाई अड्डा है जो मंदिर से 75 किमी की दूरी पर है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
ट्रेन द्वारा- दतिया मंदिर से निकटतम रेलवे स्टेशन झाँसी है जो इस मंदिर से 30 किमी की दूरी पर है। यहां से आप स्थानीय परिवहन सेवाओं या टैक्सी का उपयोग करके इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग- इस मंदिर की सड़कें देश के अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ी हुई हैं इसलिए आप देश के किसी भी हिस्से से अपने वाहन या किसी सार्वजनिक बस या टैक्सी द्वारा इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
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