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पीताम्बरा पीठ दतिया शहर मे स्थित देश का एक प्रशिद्ध शक्तिपीठ है। श्री गोलोकवासी स्वामीजी महाराज ने 1935 में इस जगह पर “बगलामुखी देवी ” एवं “धूमवाती माता ” की स्थापना की थी। हमारे देश में मां दुर्गा के कई ऐसे चमत्कारिक मंदिर हैं, जिनके आगे विज्ञान भी दांतों तले उंगली दबा लेने पर मजबूर हो जाता है। इन्हीं में से एक है पीताम्बरा पीठ मंदिर जहां मां की अनोखी कृपा न सिर्फ भक्तों पर बरसती है बल्कि भक्त यहां खुद भी तीन प्रहर में मां के अलग-अलग स्वरूपों के दर्शन करते हैं।
बता दें कि, यहां मां के दर्शन के लिए कोई दरबार नहीं सजाया जाता बल्कि एक छोटी सी खिड़की है, जिससे मां के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया जाता है। वैसे तो यहां हर समय ही भक्तों का तांता सा लगा रहता है लेकिन नवरात्री में मां की पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है। कहा जाता है कि पीले वस्त्र धारण करके, मां को पीले वस्त्र और पीला भोग अर्पण करने से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। मां पीतांबरा देवी तीन प्रहर में अलग-अलग रुप धारण करती हैं। अगर किसी भक्त ने सुबह मां के किसी स्वरूप को देखा हैं तो दूसरे पहर में उसे दूसरे रूप के सौभाग्य प्राप्त होता है। तीसरे पहर में भी मां का स्वरूप बदला हुआ दिखता है। मां के बदलते स्वरूप का राज यहां आज तक किसी को नहीं पता चल सका।
देवी पीतांबरा एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है जिसकी ख्याती विश्व विख्यात है। यहां लाखों श्रद्धालु देश विदेश से माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में मांगी हुई हर मुराद पूरी होती है एवं राजनीति से लेकर फिल्मी हस्तियां इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। यहां माता बगलामुखी के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से किए जाते हैं। कभी भी श्रद्धालुओं को देवी मां की प्रतिमा के सामने खड़ा होने का अवसर प्राप्त नहीं होता और किसी को भी मां पीतांबरा को छूने की इजाजत नहीं है। माता का श्रृंगार हमेशा पीले वस्त्रों से होता है और इन्हें पीले रंग के फूल ही अर्पण किए जाते हैं। यह आने वाले श्रद्धालु मां को भोग भी पीले रंग का ही लगाते हैं।
पीतांबरा माता का विशाल मंदिर मध्य प्रदेश राज्य के दतिया शहर में स्थित है जो की झांसी रेलवे स्टेशन से मात्र 40 किलोमीटर है। दिल्ली से मुंबई जाने वाली रूट की सभी ट्रेनें यहां होकर गुजरती है। यहां उतरकर आप टैक्सी या बस द्वारा पीतांबरा के दर्शन के लिए जा सकते हैं। अगर आप हवाई मार्ग से यहां आना चाहते है तो यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर है जो कि यहां से 75 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
वैसे तो साल में हमेशा ही के दर्शन के लिए दरबार खुला रहता है पर जो लोग नियमित रूप से यहां आते हैं वो यहां की विशेषता भी जानते हैं। माना जाता है कि शनिवार को दर्शन करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। मंदिर में जाने पर आपको दो लाइन लगी हुई मिलती है जिसमें एक तरफ महिलाएं वह दूसरी तरफ पुरुष होते हैं।
पीताम्बरा पीठ मंदिर से एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा है। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। तभी एक योगी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को स्वामी महाराज से मिलने के लिए कहा। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में 51 कुण्डीय महायज्ञ करने की बात कही। यज्ञ के नौवें दिन, जब यज्ञ समाप्त होने वाला था, नेहरू को 'संयुक्त राष्ट्र' से एक संदेश मिला कि चीन ने हमला रोक दिया है, और 11 वें दिन, अंतिम बलिदान के साथ, चीन ने अपनी सेना वापस ले ली थी। भारत-चीन युद्ध के दौरान पूजा के लिए बनाई गई यज्ञशाला आज भी परिसर में मौजूद है। पंडित परिसर की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, जब देश पर किसी तरह की परेशानी आती है तो मंदिर में गोपनीय रूप से मां बगुलामुखी जो कि मां पीतांबरा का ही स्वरूप हैं। उनकी पूजा की जाती है। बताया गया कि चीन के अलावा 1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और 2000 में कारगिल में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी मां बगुलामुखी की गुप्त साधना की गई थी। इसी के परिणाम स्वरुप दुश्मनों को हार का सामना करना पड़ा था।
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