Logo

ज्वाला देवी शक्तिपीठ, कांगड़ा, हिमांचल प्रदेश (Jwala Devi Shaktipeeth, Kangra, Himachal Pradesh)

ज्वाला देवी शक्तिपीठ, कांगड़ा, हिमांचल प्रदेश (Jwala Devi Shaktipeeth, Kangra, Himachal Pradesh)

यहां गिरी थी माता सती की जीभ, लगातार जल रही है नौ ज्योतियां


ज्वाला देवी शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में शिवालिक श्रेणी की गोद में बसा है जिसे “कालीधार” भी कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था। यहां माता को प्रकाश की देवी माना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है जहाँ मुख्य भगवान की न कोई मूर्ति है न ही कोई तस्वीर होती है। 


कहा जाता है कि देवी सती की जीभ इस स्थान पर गिरी थी। यहां सती की जीभ पवित्र ज्वाला द्वारा दर्शाई जाती है जो हमेशा जलती रहती है। यहाँ प्राचीन काल से प्राकृतिक ज्वालाएँ हैं जिन्हें देवी का प्रतीक माना जाता है।


लगातार जलती रहती है नौ ज्वालाएं



ज्वाला देवी मंदिर में सदियों से बिना तेल बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं। नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला चांदी के जाले के बीच जल रही है जिसे महाकाली का स्वरूप माना जाता है. जबकि बाकी आठ ज्वालाएं देवी अन्नपूर्णा, देवी चण्डी, देवी हिंगलाज, देवी विंध्यवासिनी, देवी महालक्ष्मी, देवी सरस्वती, देवी अम्बिका और अंजी देवी के रूप में प्रज्वलित हैं। ज्वाला देवी मंदिर इंडो-सिख वास्तुकला शैली में निर्मित है। मंदिर में सोने के गुंबद, चांदी के शिखर और दरवाजे हैं। इसके अलावा मंदिर के मुख्य दरवाजे के पास एक विशाल पीतल की घंटी है जिसे नेपाल के राजा ने भेंट किया था। माँ ज्वाला देवी के इस मंदिर को सबसे पहले राजा भूमिचंद द्वारा बनवाया गया था जिसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने इस मंदिर का जीणोद्धार का कार्य किया। माँ ज्वाला देवी लखनपाल, ठाकुर, गुजराल और भाटिया समुदाय की कुलदेवी मानी जाती हैं, ऐसे में इन सभी के द्वारा भी मंदिर में लगातार निर्माण कार्य कराए जाते रहे हैं।


मंदिर को लेकर किवदंतिया और इतिहास :


ज्वालादेवी मंदिर से संबंधित एक धार्मिक कथा के अनुसार, भक्त गोरखनाथ यहां माता की आराधना किया करते थे। वह माता के परम भक्त थे और पूरी सच्ची श्रद्धा के साथ उनकी उपासना करते थे। एक बार गोरखनाथ को भूख लगी और उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। माता ने आग जला ली। बहुत समय बीत गया लेकिन गोरखनाथ भिक्षा लेकर वापस नहीं पहुंचे। कहा जाता है कि तभी से माता अग्नि जलाकर गोरखनाथ की प्रतीक्षा कर रही हैं। ऐसी मान्यता है कि सतयुग आने पर ही गोरखनाथ लौटकर आएंगे। तब तक यह ज्वाला इसी तरह जलती रहेगी। 



इसके अलावा इस मंदिर की एक कहानी और है जहां मुगल बादशाह अकबर ने लौ को बुझाने की कोशिश की थी। उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर उन्हें बुझाने के आदेश दिए। हालाँकि लाखों कोशिशों के बाद भी अकबर की सेना मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाई।



जिसके बाद देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए उसने पचास किलो सोने का छत्र देवी मां के दरबार में चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छत्र कबूल नहीं किया और वह छत्र गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आज भी बादशाह अकबर का यह छत्र ज्वाला देवी के मंदिर में रखा हुआ है।


कैसे पहुंचे : 


ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि ज्वालाजी से 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है। रेल मार्ग से जाने वाले यात्री पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मारंडा होते हुए पालमपुर आ सकते हैं। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा यात्री अपने निजी वाहन और हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहां तक पहुंच सकते हैं।


........................................................................................................
यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeBook PoojaBook PoojaTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang