आगरा के सिकंदरा उपनगर में माता काली का यह विशाल प्रांगण वाला मंदिर स्थित है। 200 साल से भी अधिक प्राचीन यह मंदिर ऐतिहासिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना बंगालियों द्वारा की गई थी। यहां काली माता की प्राचीन प्रतिमा के साथ अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियां स्थापित हैं। प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं।
इस कालीबाड़ी मंदिर में पहले देवी प्रतिमा के समक्ष बकरे की बलि दी जाती थी। बलि देने के लिए मंदिर में एक विशेष स्थान बना हुआ है, जो आज भी देखा जा सकता है। हालांकि, अब बकरे की बलि देने की परंपरा समाप्त कर दी गई है। लेकिन श्रद्धालु हर अमावस्या की रात माता को प्रसन्न करने के लिए पेठे के फल की बलि चढ़ाते हैं।
मंदिर के पुजारियों के अनुसार, इसकी स्थापना के समय यहां एक मटका मिला था, जिसमें आज भी पानी भरा हुआ है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इस पानी में कभी खराबी नहीं आती। ऐसा माना जाता है कि यह पानी मंदिर की स्थापना के समय से ही मौजूद है। यह चमत्कारी मटका देवी मां की प्रतिमा के चरणों में रखा गया है।
जो विधि कर्म में लिखे विधाता,
मिटाने वाला कोई नहीं,
जोगी भेष धरकर,
नंदी पे चढ़कर ॥
जुग जुग जियसु ललनवा,
भवनवा के भाग जागल हो,
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
ज्योत से ज्योत जगाते चलो