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भारत एक ऐसा देश है जहां कई धर्म के लोग रहते हैं। इसलिए यहां अनगिनत मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे हैं जो हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के साक्षी हैं। इसी श्रृंखला में एक है दिल्ली का प्रसिद्ध गुरुद्वारा 'गुरुद्वारा बंगला साहिब'। सिखों के आठवें गुरु, गुरु हरकृष्ण साहिब जी का संबंध गुरुद्वारा बंगला साहिब और इसके अंदर बने सरोवर से माना जाता है। गुरु हरकृष्ण साहिब जी को पांच वर्ष की बेहद कम उम्र में गुरु पद प्राप्त हो गया था। गुरु हरकृष्ण जी बेहद उदार मन तथा सेवा भावना से युक्त थे। तो आइए जानते हैं इस गुरुद्वारे के बारे में-
गुरुद्वारा बंगला साहिब सबसे प्रमुख सिख गुरुद्वारों में से एक है। गुरुद्वारा बंगला साहिब नई दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में अशोक रोड और बाबा खड़ग सिंह मार्ग के पूर्व की ओर चौराहे पर स्थित है।
मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के शासनकाल के दौरान 1783 में सिख जनरल सरदार भगेल सिंह द्वारा एक छोटे से श्राइन का निर्माण किया गया था। उसी वर्ष सरदार भगेल सिंह ने दिल्ली में नौ सिख धार्मिक स्थलों के निर्माण को अपनी देखरेख में बनवाया था। मूल रूप से इस जगह 17वीं सदी में मिर्जा राजा जयसिंह, जो एक भारतीय शासक की हवेली थी। इसलिए इसका नाम जयसिंह पैलेस था। मिर्जा राजा जयसिंह मुगल बादशाह औरंगजेब के एक महत्वपूर्ण सैन्य नेता थे।
यहां सिखों के आठवें गुरु, गुरु हरकृष्ण साहिब जी की स्मृति में प्रकाश पर्व मनाया जाता है। गुरु हरकृष्ण सबसे कम उम्र के गुरुओं में से एक थे, जिन्होंने 8 साल की उम्र में ही गुरु गद्दी संभाली थी। इस छोटी उम्र में स्वाभाविक रूप से उन्होंने अन्य धर्मों के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया था।
गुरु हरकृष्ण को बहुत छोटी उम्र में गद्दी प्राप्त हुई थी जिसका मुगल बादशाह औरंगजेब ने विरोध किया था। इस मामले में औरंगजेब ने गुरु हरकृष्ण को दिल्ली बुलाया ताकि वह जान सके कि सिखों के नए गुरु में ऐसा क्या खास है जो इतनी कम उम्र में उन्हें यह औहदा प्राप्त हुआ।
इस गुरुद्वारे के परिसर में आज एक म्यूजियम, पुस्तकालय और अस्पताल भी है। बाहर से आने वालों के लिए यहां हाल ही में एक यात्री निवास भी बनवाया गया है। आप यदि गुरुद्वारे के पीछे भी जाएंगे तो देखेंगे कि वहां से भी गुरुद्वारा बहुत खूबसूरत और भव्य दिखता है।
1664 में गुरु हरकृष्ण साहिब जी जब दिल्ली पहुंचे, तो वहां हैजे की महामारी फैली हुई थी। उन्होंने पैलेस के कुएं से ताजा पानी देकर लोगों की पीड़ा में मदद की। इस कुएं को आज सरोवर कहा जाता है।
इतिहास के अनुसार गुरु जी ने अपने चरणों को सरोवर के जल में रखकर अरदास की थी। फिर उस जल से मरीजों को बीमारी से लड़ने की सहायता मिली थी। कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराने के बाद उन्हें स्वयं चेचक निकल आई। अंत में 30 मार्च को उनका निधन हो गया। जिसके बाद राजा जय सिंह ने तब इस बंगले को आठवें सिख गुरु को समर्पित किया।
30 मार्च सन् 1664 को मरते समय उनके मुंह से ‘बाबा बकाले’ शब्द निकला था। जिसका अर्थ था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव में ढूंढा जाए। साथ ही गुरु साहिब ने सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यु पर नहीं रोएगा।
इस कुएं के पानी को स्वास्थ्यवर्धक, आरोग्यवर्धक माना जाता है। इस जल में सरोवर के पवित्र उपचार के गुण के कारण दुनिया भर से सिख लोग इस सरोवर का जल घर लेकर जाते हैं। बाद में राजा जय सिंह ने इस कुएं पर एक टैंक बनवा दिया था।
सिखों के लिए गुरुद्वारा बंगला साहिब और इस सरोवर की बड़ी श्रद्धा है। गुरु हरकृष्ण सिंह की जयंती पर यहाँ पर विशेष मंडली द्वारा एक भव्य आयोजन किया जाता है।
दिल्ली का गुरुद्वारा बंगला साहिब 24 घंटे खुला रहता है, वही लंगर का समय सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे और शाम 7 बजे से रात 10 बजे हैं।
बंगला साहिब गुरुद्वारा जाने के लिए नजदीकी मेट्रो स्टेशन पटेल चौक है यहां से आप बंगला साहिब गुरुद्वारा पैदल चलकर भी पहुंच सकते है।
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