बंगाल के मंदिरों और पूजा शैली की याद दिलाता है दिल्ली का पूर्बाशा काली मंदिर
दिल्ली और एनसीआर इलाकों में ऐसे कई बड़े और प्राचीन मंदिर मौजूद हैं जो दिल्ली वासियों और बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों के लिए आस्था और आकर्षण का केंद्र है। इनमें इस्कॉन मंदिरों की एक विस्तृत श्रृंखला के अलावा भी बहुत से मंदिर है जिनका अपना पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। इसी क्रम में एक महत्वपूर्ण देवालय है पूर्वी दिल्ली का सबसे बड़ा काली मंदिर पूर्बाशा काली मंदिर। यहां आप बंगाली आध्यात्मिक परंपराओं के दर्शन कर सकते हैं।
यह बंगाली धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी गतिविधियों के मुख्य केंद्र के रूप में विख्यात पूर्बाशा काली मंदिर अपने आप में एक विरला देव स्थान है। यहां पर हर महिने की अमावस्या को मां काली की विशेष पूजा एवं भंडारे का आयोजन किया जाता है।
पूर्बाशा काली मंदिर का इतिहास
मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता है कि पूर्बाशा काली मंदिर की स्थापना क्षेत्र के एक प्रमुख सामाजिक और धार्मिक संगठन के कुछ लोगों द्वारा की गई थी। जनभागीदारी से उन्होंने एक सुंदर मंदिर का निर्माण कर यहां मां काली की मूर्ति स्थापित की। आज यह पूर्वी दिल्ली में सबसे बड़ा काली मंदिर। वही बात अगर मंदिर की वास्तुकला की करें तो यह पारंपरिक बंगाली वास्तुकला का शानदार नमूना है। इसमें बड़ी बारीकी से बंगाली डिजाइन और सजावटी चित्रों को उकेरा गया है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मां काली एक प्रमुख देवी हैं। यह मां का रौद्र और अत्यंत भयानक स्वरूप हैं। उनकी महिमा और शक्ति का वर्णन हमारे कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।
विशेषता
- पूर्बाशा काली मंदिर एक आश्चर्यजनक और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।
- प्रति वर्ष लाखों भक्त यहां देवी दर्शन करने आते हैं।
- पूर्बाशा काली मंदिर की नवरात्रि क्षेत्र में बहुत अधिक लोकप्रिय है। यहां यह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस समय भक्तों का आना-जाना मंदिर में बढ़ जाता है।
- इसके अलावा बंगाली साहित्य का विशेष संग्रहालय यहां की एक और खासियत है। यह छोटा सा पुस्तकालय बंगाली साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों के लिए बहुत खास है।
दर्शन समय
सुबह 7:30 AM - 12:00 PM,
शाम 5:00 PM - 9:00 PM
कैसे पहुंचें
यहां से निकटतम मेट्रो स्टेशन लक्ष्मी नगर मेट्रो स्टेशन है।
दिवाली पर माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा का विशेष महत्व है। सही विधि से पूजा करने और विशेष उपाय अपनाने से धन, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है। इससे आर्थिक तंगी दूर रहती है और माता लक्ष्मी जी की कृपा भी बनी रहती है।
दिवाली पर मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। साफ-सफाई, शुभ रंगों और विशेष भोग से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। श्री यंत्र की स्थापना और दीप प्रज्वलन से सुख-समृद्धि का वास होता है।
देव दिवाली देवताओं की दिवाली मानी जाती है। यह दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर का वध कर देवताओं को मुक्ति दिलाने की खुशी में मनाया जाता है।
दिवाली पूजा के बाद लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को सही तरीके से संभालना बेहद महत्वपूर्ण है। पुरानी मूर्तियों को सम्मान के साथ विसर्जित करना और नई मूर्तियों को पूजा स्थल पर स्थापित करना शुभ माना जाता है। गलत तरीके से मूर्तियों का उपयोग करने से पूजा का फल नष्ट हो सकता है।