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राणी सती दादी मंदिर, मंदिर

राणी सती दादी मंदिर, मंदिर

दिल्ली में स्थित है पहिला राणी सती मंदिर, इस समुदाय की मानी जाती हैं कुलदेवी


दिल्ली के रोहिणी में यह पहिला एवं एकमात्र राणी सती मंदिर है। कहते है यहां पर हर मनोकामना सिद्ध होती है। रानी सती का यह मंदिर सम्मान, ममता और स्त्री शक्ति का प्रतीक है। यह मंदिर झुंझुनू के राणी सती मंदिर से प्रेरित होकर दिल्ली के भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए स्थापित किया गया है। बता दें कि राजस्थान के झुंझुनू शहर के बीचों-बीच स्थित रानी सती मंदिर देश के प्रमुख दर्शनीय स्थलों के अलावा भारत के सबसे अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है।

कहा जाता है कि रानी सती जी को समर्पित यह मंदिर 400 साल पुराना है। वहीं दिल्ली के नाहरपुर गांव में भी प्रवेश करते ही मंदिर का एक विशाल प्रवेश द्वार बना हुआ है। मंदिर में हर तरफ पाठ करते हुए भक्तों की तल्लीनता से उसकी दिव्यता का आभास होता है। यह मंदिर रोहिणी वाल्मीकि मंदिर और रोहिणी कालीबाड़ी जैसे मंदिरों के आस-पास ही स्थित है। इस मंदिर में प्रवेश निःशुल्क है। 



मंदिर का इतिहास 


पौराणिक कथा के मुताबिक, महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में वीर अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए थे। उस समय उत्तरा जी को भगवान श्री कृष्ण जी ने वरदान दिया था कि तू कलयुग में ''नारायणी'' के नाम से श्री सती दादी के नाम से विख्यात होगी, और हर किसी का कल्याण करेगी और पूरी दुनिया में पूजी जाएगी। श्री दादी सती का जन्म सन् 1638 में हिसार में हुआ था। इनके पिता का नाम सेठ श्री गुरसामल था। इनकी माता का नाम शारदा देवी था। श्री दादी सती जी के बचपन का नाम नारायणी बाई रखा गया था। बचपन से ही लोगों को इनमें दैविक शक्तियां नजर आती थी। नारायणी बाई के पिता ने उन्हे धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र शिक्षा व घुड़सवारी की शिक्षा भी दिलाई थी। 



मंदिर की विशेषता 


मारवाड़ी लोगों का कहना है कि रानी सती जी, स्त्री शक्ति की प्रतीक और मां दुर्गा का अवतार थीं। उन्होंने अपने पति के हत्यारे को मारकर बदला लिया और फिर अपने सती होने की इच्छा पूरी की। वैसे अब मंदिर का प्रबंधन सती प्रथा का विरोध करता है। मंदिर के गर्भगृह के बाहर बड़े अक्षरों में लिखा है हम सती प्रथा का विरोध करते हैं। 



कैसे पहुंचे मंदिर 


मंदिर पहुंचने का नजदीकी मेट्रो स्टेशन रोहिणी ईस्ट और रोहिणी वेस्ट मेट्रो स्टेशनों है। यहां से मंदिर तक पहुंचना समान रूप से आसान है। 


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कल्पवास क्या होता है?

प्रयागराज में 13 जनवरी से कुंभ मेले की शुरुआत होने जा रही है। यह हिंदू धर्म का सबसे बड़ा समागम है, जिसमें लाखों हिंदू श्रद्धा की डुबकी लगाते हैं।

कल्पवास की पौराणिक कथाएं

प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियां पूरी कर ली गई है। 12 जनवरी से इसकी शुरुआत होने जा रही है। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग कल्पवास के लिए प्रयागराज पहुंचेंगे और माघ का महीना गंगा किनारे बिताएंगे।

क्या महिलाएं कर सकती हैं कल्पवास

हिंदू धर्म में कल्पवास की परंपरा मोक्ष और शांति का साधन है। यह माघ महीने में गंगा, यमुना , सरस्वती के संगम पर संयमित जीवन जीने की परंपरा है, जो सदियों से चली आ रही है।

भगवान को भोग क्यों लगाया जाता है?

सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान या फिर भोजन करने से पहले भगवान को भोग लगाने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि भगवान को दिल से जो भी खिलाया जाए, तो वह उतने ही प्यार से उसे ग्रहण करते हैं।

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