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नवरात्रि से कैसे जुड़ा अकाल बोधन

नवरात्रि से कैसे जुड़ा अकाल बोधन

Akal Bodhan 2025: शारदीय नवरात्र से कैसे जुड़ा है अकाल बोधन? पढ़ें क्या है यह विधि और क्यों है इतनी खास

शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा की आराधना के कई विशेष अनुष्ठान होते हैं। इन्हीं में से एक है अकाल बोधन। इसका अर्थ है कि मां दुर्गा को उनके नियत समय से पहले जगाना और धरती पर आमंत्रित करना। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन के दौरान देवता योगनिद्रा में रहते हैं। इस अवधि में जब भक्त मां का आह्वान करते हैं तो इसे अकाल बोधन कहा जाता है। इस वर्ष अकाल बोधन शनिवार, 27 सितंबर 2025 को षष्ठी तिथि पर किया जाएगा।

क्या है अकाल बोधन?

अकाल बोधन का अर्थ है देवी मां को उनके पारंपरिक समय से पूर्व जागृत करना। पौराणिक मान्यता है कि शरद ऋतु में देवी-देवता योगनिद्रा में चले जाते हैं। ऐसे में मां दुर्गा को शारदीय नवरात्रि में जगाकर पूजा जाता है। यही कारण है कि बंगाल और पूर्वी भारत में दुर्गा पूजा को अकाल बोधन भी कहा जाता है।

कैसे हुई शुरुआत?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम रावण से युद्ध की तैयारी कर रहे थे, तब उन्होंने मां दुर्गा को प्रसन्न करने का निर्णय लिया। पूजा के लिए 108 नीलकमल की आवश्यकता थी, लेकिन केवल 107 ही उपलब्ध थे। श्रीराम ने अपनी आंख अर्पित करने का संकल्प लिया, क्योंकि वह नीले कमल जैसी थी। जैसे ही वे अपनी आंख निकालने लगे, मां दुर्गा प्रकट हुईं और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर विजय का आशीर्वाद दिया। इसी कारण शारदीय नवरात्रि का अकाल बोधन विशेष माना जाता है और दशमी के दिन रावण वध की स्मृति में विजयादशमी या दशहरा मनाया जाता है।

कैसे किया जाता है अकाल बोधन?

  • कलश स्थापना – सबसे पहले घर या पंडाल को शुद्ध कर कलश स्थापित किया जाता है। कलश देवी का प्रतीक है।
  • सामग्री – जल, अक्षत, हल्दी, कुमकुम, पुष्प और पत्तियां कलश में रखी जाती हैं।
  • स्थान – कलश को बिल्व वृक्ष के पास रखा जाता है, क्योंकि बेलपत्र मां को अत्यंत प्रिय है।
  • मंत्रोच्चार और प्रार्थना – विशेष मंत्रों से मां का आह्वान कर उन्हें जागृत किया जाता है।

बंगाल में अकाल बोधन

बंगाल में दुर्गा पूजा की शुरुआत ही अकाल बोधन से होती है। षष्ठी तिथि को पूरे भक्ति भाव से मां को जागृत कर आमंत्रित किया जाता है। मंदिर और पंडालों में कलश स्थापना, नवपत्रिका पूजा और विशेष अनुष्ठान होते हैं। घर-घर मां का स्वागत दीप, पुष्प और बेलपत्र से किया जाता है। बंगाली संस्कृति में यह केवल पूजा ही नहीं, बल्कि मां की शक्ति, समृद्धि और सुरक्षा को जीवन में आमंत्रित करने का प्रतीक है।

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