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दीपावली का पर्व पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन बिहार और यूपी के गांवों में इसे मनाने का एक अनूठा तरीका है। यहां दीपावली की रात महिलाएं सूप पीटने की परंपरा निभाती हैं। जिसे दरिद्रता को भगाने और समृद्धि लाने का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं घर के हर कोने में सूप पीटती हैं। दरवाजे और घर में इसे घुमाते हुए कहती हैं, "अन्न-धन लक्ष्मी घर आए, दरिद्रता बाहर जाए।" इस परंपरा के अंत में सूप और झाड़ू को खेतों या चौराहों पर फेंक दिया जाता है, ताकि नकारात्मकता और गरीबी कभी लौटकर घर ना आए।
धन की देवी माता लक्ष्मी का त्योहार दीपावली पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों को दीपों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाते हैं। लक्ष्मी और गणेश जी की आराधना कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। हालांकि, भारत के विभिन्न हिस्सों में इस पर्व को मनाने के तौर-तरीके अलग-अलग होते हैं। बिहार में दीपावली की रात एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है। इसमें दरिद्रता को दूर भगाने के लिए सूप पीटने की प्रथा है। इस प्रथा का उद्देश्य घर से दरिद्रता को बाहर निकालकर समृद्धि और वैभव को आमंत्रित करना है।
बिहार और यूपी व इसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली की रात और सुबह ब्रह्म मुहूर्त के दौरान महिलाएं अपने घरों के हर कोने में सूप पीटती हैं और यह कहते हुए दरिद्रता को बाहर निकालती हैं "अन्न-धन लक्ष्मी घर आए, दरिद्रा बाहर जाए।" यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी पूरे विश्वास और श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।
गांव की बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं कि यह परंपरा उन्हें पूर्वजों से विरासत में मिली है। हालांकि, इस रिवाज के पीछे के तथ्य से वे पूरी तरह परिचित नहीं हैं। लेकिन, ऐसा मानना है कि इसे निभाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और दरिद्रता दूर होती है। लोगों के अनुसार यह क्रिया उन्हें मानसिक संतोष भी देता है। क्योंकि, ऐसा करने से उन्हें लगता है कि उन्होंने लक्ष्मी का स्वागत किया है और घर से गरीबी को बाहर निकाल दिया है।
दीपावली की रात माता लक्ष्मी की पूजा के बाद, सूर्योदय से पहले के एक घंटे में गांव की महिलाएं पुराने चावल के सूप को लेकर घर के हर कोने में जाती हैं। वे सूप को (लकड़ी की छड़ी) या टूटे झाड़ू से पीटते हुए पूरे घर में घुमाती हैं। इसके बाद वे घर के आंगन से होते हुए दरवाजे तक जाती हैं और फिर गली-मोहल्लों में जाकर सूप को पीटते हुए यह प्रक्रिया पूर्ण करती हैं। पीटते-पीटते वे अंततः सूप और छड़ी को गांव के खेतों या झाड़ियों में फेंक देती हैं, ताकि दरिद्रता वहीं रह जाए और वापस घर ना लौटे।
सूप पीटने की यह परंपरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है। बल्कि, इसमें एक प्रतीकात्मक संदेश भी छिपा है। महिलाएं मानती हैं कि घर के हर कोने में सूप घुमाने और पीटने से छिपी हुई नकारात्मकता और दरिद्रता घर से बाहर निकलती है। इसके साथ ही वे लक्ष्मी के आगमन का आह्वान करती हैं। उनका विश्वास है कि यह अनुष्ठान घर में धन, वैभव और शांति लाता है।
जब महिलाएं सूप और लकड़ी को गांव के बाहर छोड़ आती हैं तो कई स्थानों पर इसे चौराहे पर जलाने की परंपरा भी है। इस पूरे अनुष्ठान के दौरान इस्तेमाल किए गए सूप और झाड़ू को जला देने का रिवाज यह संकेत देता है कि दरिद्रता और नकारात्मकता को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया है।
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