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शिव की उत्पत्ति (Shiv jee kee Utpatti)

शिव की उत्पत्ति (Shiv jee kee Utpatti)

अजन्मे, निराकार, निर्गुण और निर्विकार भगवान शिव की उत्पत्ति की संपूर्ण कहानी 


 शंकर, महादेव, महेश, गंगाधर, गिरीश, नीलकंठ, भोलेनाथ, रुद्र जैसे अनेकानेक नामों से विख्यात भगवान शिव को परम शक्तिशाली और सर्वश्रेष्ठ देवता कहा जाता है। सनातन धर्म के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि सृष्टि शून्य से आरंभ होती है और शून्य पर ही सब कुछ अंत हो जाता है। संपूर्ण ब्रह्मांड का मौलिक गुण एक विराट शून्य है। वेदों में लिखा है कि जो जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन वेदों में ईश्वर को अजन्मा, अप्रकट, निराकार, निर्गुण और निर्विकार कहा गया है। कहा जाता है कि न तो ईश्वर का जन्म होता है और न ही उसकी कोई मृत्यु निश्चित है, वो बस एक रूप से दूसरा रूप धारण करते रहते हैं। भगवान शिव की उत्पत्ति को लेकर भी ऐसी मान्यता है, शास्त्रों के अनुसार शिव अजन्मे और कल्‍याणकारी हैं, इसके अलावा शिव ही लय और प्रलय के स्वामी भी हैं। लय के देवता शिव का एक नाम भोलेनाथ भी है और वे वाकई इतने भोले हैं कि भक्तों की एक पुकार पर आजाते हैं, लेकिन प्रलय के देवता का रौद्र रूप भी ऐसा है कि तीसरा नेत्र खोलने मात्र से संसार का संहार हो सकता है। इसके अलावा शिव जब स्वंय किसी भक्ति करने पर आते हैं तो गोपेश्वर बनकर कृष्ण दर्शन के लिए गोकुल पहुंच जाते हैं और शिव जब अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं तो तांडव नृत्य से तीनों लोकों में कंपन आ जाता है।


भगवान शिव ने ही गुरु शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। भगवान शिव के पहले शिष्यों में सप्तऋषियों का स्थान सर्वप्रथम है और माना जाता है कि सृष्टि में ज्ञान के प्रचार प्रसार की शुरुआत भी यहां से हुई है। सप्तऋषियों में बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, महेंद्र, प्राचेतस मनु, सहस्राक्ष और भारद्वाज शामिल हैं। तंत्र साधना करने वालों के लिए भैरव स्वरूप देवों के देव महादेव को सौम्‍य और रौद्र दोनों रूपों भक्तों द्वारा पूजा जाता है। लेकिन फिर भी संसार में संहारक के रूप में देवाधिदेव भगवान शिव जितने भोले हैं उनकी उत्‍पत्ति आज़ भी उतना ही बड़ा रहस्‍य है। भक्तवत्सल के इस खास आर्टिकल में जानते हैं भगवान शिव की उत्पत्ति की पूरी कथा को विस्तार से:


शिव की उत्पत्ति एक रहस्य 

भगवान शिव की उत्पत्ति को लेकर शिव पुराण में उल्लेख है कि सबसे पहले एक प्रकाश पुंज उत्पन्न हुआ इसी प्रकाश पुंज से ब्रह्मा और विष्‍णु की उत्‍पत्ति हुई। जब ब्रह्माजी ने प्रश्न करते हुए प्रकाश पुंज का परिचय पुछा तो उसने स्वयं को शिव बताया।

लेकिन विष्णु पुराण के अनुसार, शिव विष्णु जी के माथे के तेज से उत्पन्‍न हुए हैं और इसी कारण वे हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं। कुछ स्थानों पर भगवान शिव को स्वयंभू भी माना जाता है जिसका मतलब है कि स्वयं ही प्रकट हुए हैं। 

विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने एक बच्चे के लिए तपस्या की तो उनकी गोद में रोते हुए बालक के रूप में शिव प्रकट हुए। इसी कथा के विस्तार के अनुसार सृष्टि में प्रलय के समय जब धरती, आकाश, पाताल समेत पूरा ब्रह्माण्ड जलमग्न था तो विष्णु जी उस अपार जलराशि पर शेषनाग पर विश्राम कर रहे थे। तभी उनकी नाभि से ब्रह्मा जी और सृष्टि के संबंध में चर्चा के दौरान शिव उत्पन्न हुए। शिव जी के प्रकट के बाद ब्रह्मा उन्हें पहचान नहीं पाएं जिस पर शिव नाराज हो गए। तब भगवान विष्णु ने बह्मा जी को दिव्य दृष्टि प्रदान की जिससे सब कुछ स्पष्ट हो गया। शिव से क्षमा मांगते हुए उन्होंने उनसे अपने पुत्र रूप में अवतार लेने की याचना की। और शिव बच्चे के रूप में उनकी गोद में प्रकट हुए। रोते हुए बालक को देख ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रुद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’ इसके अलावा ब्रह्मा ने ही शिव को शिव, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव जैसे एक सौ आठ नए नाम दिए। 

कूर्म पुराण की एक कथा के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति के समय ब्रह्मा जी के आंसुओं से भूत-प्रेतों और मुख से रुद्र उत्पन्न हुए। रुद्र भगवान शिव के अंश और भूत-प्रेतों के स्वामी हैं। 

भगवान शिव की उत्पत्ति को लेकर एक प्रसंग यह भी है कि भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के मध्य श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया तभी उन्हें एक रहस्यमयी खंभा दिखाई दिया। उस खंभे से एक अदृश्य और दिव्य आवाज ने भगवान ब्रह्मा और विष्णु को खंभे का पहला और आखिरी छोर ढूंढने को कहा और अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की चुनौती दी। भगवान ब्रह्मा ने पक्षी का रूप धारण कर खंभे के ऊपरी हिस्से की खोज में उड़ान भरी और भगवान विष्णु वराह रूप में खंभे के निचले छोर को ढूंढने निकल पड़े। लाख प्रयास करने के पश्चात भी दोनों असफल रहे। तभी खंबे ने स्वयं का परिचय शिव के रूप में दिया। 


शिव के विवाह

 भगवान शिव की दो पत्नियों में पहली देवी सती और दूसरी माता पार्वती हैं । कुछ पौराणिक कथाओ में महादेव के चार विवाह होने की बात भी कही गई है।  पहला विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री माता सती के साथ हुआ़ था। सती के पिता ने जब भगवान शिव का अपमान किया सती ने यज्ञकुंड में खुद को भस्‍म कर लिया । इसके बाद भोलेनाथ ने हिमालय की बेटी शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती से विवाह किया जो माता सती का ही पुनर्जन्म था। भगवान शिव की तीसरी पत्नी देवी उमा और चौथी पत्नी मां महाकाली को बताया गया है। हालांकि अधिकतर स्थानों पर उमा और महाकाली को पार्वती का ही रूप बताया गया है।


शिवलिंग क्या है?

शिव की पुजा हिंदू धर्म में शिवलिंग के रूप में भी की जाती है। शिव अर्थात कल्याणकारी लिंग अर्थात सृजन। शिव लिंग के दो प्रकार होते हैं। पहला सभी शिवलिंग के स्वरूप वाला काला अंडाकार शिवलिंग और दूसरा पारे का शिवलिंग। मान्यताओं के अनुसार, लिंग एक विशाल लौकिक ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। 


शिव ज्योतिर्लिंग

शिवपुराण में मन, चित्त, ब्रह्म, माया, जीव, बुद्धि, घमंड, आसमान, वायु, आग, पानी और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड की संज्ञा दी गई है। शिव के कुल बारह ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग कोनों में विराजमान हैं। ये 12 ज्योतिर्लिंग हैं- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वरम, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर है। 


शिव के प्रमुख नाम और उनका अर्थ 

1. शंकर- सबका कल्याण करने वाले

2. विष्णुवल्लभ- भगवान विष्णु के अतिप्रेमी

3. त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी

4. कपाली- कपाल धारण करने वाले

5. कृपानिधि – करूणा की खान

6. नटराज- तांडव नृत्य के प्रेमी शिव को नटराज भी कहते हैं।

7. वृषभारूढ़- बैल की सवारी वाले

8. रुद्र- भक्तों के दुख का नाश करने वाले

9. अर्धनारीश्वर- शिव और शक्ति के मिलन से ही ये नाम प्रचलित हुआ।

10. भूतपति – भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी 

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