फरीदाबाद स्थित कालका जी मंदिर 3000 साल से अधिक पुराना है। मान्यता है कि यहां देवी कालका की स्वयंभू छवि मौजूद है जो सतयुग से इस मंदिर में विराजमान हैं। यह प्रसिद्ध मंदिर दक्षिण दिल्ली में अरावली पर्वत श्रृंखला के सूर्य कूट पर्वत पर स्थित है। कालका माता का यह मंदिर सिद्धपीठों में से एक भी है।
मान्यता है कि इस पीठ का स्वरूप हर काल में बदलता रहता है और मां दुर्गा ने यहीं पर महाकाली के रूप में प्रकट होकर असुरों का वध किया था। इसके अति प्राचीन होने के साक्ष्य महाभारत की कथा में भी मिलता है। ऐसी भी कथा है कि महाभारत युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण के साथ पांडवों ने इस मंदिर में काली पूजा की थी।
यहां माता भक्तों की भीड़ लगभग साल भर रहती है और यह संख्या नवरात्रि के दौरान एक से डेढ़ लाख श्रद्धालुओं तक पहुंच जाती है। मंदिर में मन्नत पूरी होने के बाद बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों के मुंडन के लिए भी आते हैं। दिल्ली के लोटस टेंपल के पास स्थित यह मंदिर वैसे तो प्राचीन काल से हैं लेकिन मौजूदा मंदिर बाबा बालक नाथ द्वारा स्थापित किया गया था। कहा जाता है कि बाबा बालक नाथ ने इस पर्वत पर तपस्या की और मां भगवती ने उन्हें दर्शन दिए थे।
इस मंदिर को लेकर प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्तमान मंदिर के पुराने हिस्से का निर्माण मराठा शासकों ने 1764 ई. में करवाया था। 1816 ई. में अकबर द्वितीय ने इसका जीर्णोद्धार किया। बीसवीं शताब्दी के दौरान जब हिन्दू व्यापारियों ने मंदिरों और धर्मशालाओं का व्यापक रूप से निर्माण कराया तो उसी दौरान इस मंदिर का एक बार फिर नया स्वरूप बनाया गया जो फिलहाल मौजूद हैं।
पिरामिड की आकृति वाले इस अति प्राचीन मंदिर का गर्भगृह संगमरमर से बना हुआ है जिसके अन्दर काली देवी की पत्थर की प्रतिमा विराजमान हैं। मंदिर में 12 द्वार 12 महीनों के प्रतीक हैं। हर द्वार पर माता के अलग-अलग रूपों का चित्रण किया गया है। इस मंदिर की सबसे बड़ी बात यह है कि जहां एक ओर ग्रहण के दौरान हर एक मंदिर को बंद रखने का नियम है, वहीं कालकाजी मंदिर इस दौरान भी खुला रहता है।
इस मंदिर में 84 घंटे लगे हुए हैं जो अकबर द्वितीय ने लगवाएं थे। हालांकि इनमें से कुछ घंटे अब नहीं है। इन घंटों की विशेषता यह है कि हर घंटे की आवाज अलग-अलग है। 300 साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है। विशेष मौकों पर इसमें आज भी हवन किए जाते हैं।
इस मंदिर में मां काली का श्रृंगार दिन में दो बार बदला जाता है। सुबह माता के 16 श्रृंगार किए जाते हैं, वहीं शाम को माता के सभी आभूषण और वस्त्र फिर बदले जाते हैं। यहां की नवरात्रि भी बहुत विशेष है। इस दौरान रोजाना मंदिर को 150 किलो फूलों से सजाया जाता है। इनमें विदेशी फूल भी शामिल होते हैं। सजावट में इस्तेमाल फूल अगले दिन श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं।
नेहरू प्लेस बिजनेस सेंटर के सामने स्थित इस मंदिर तक दिल्ली मेट्रो द्वारा पहुंचा जा सकता है। नेहरू प्लेस बस टर्मिनल और ओखला रेलवे स्टेशन इसके सबसे पास है। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए दिल्ली पहुंचने के बाद शहर के लगभग हर कोने से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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ऋग्वेद
यजुर्वेद संस्कृत के दो शब्द यजुष् और वेद शब्द की संधि से बना हुआ शब्द है। यज का अर्थ होता है समर्पण जिसमें यज्ञ यानी हवन को समर्पण की क्रिया माना जाता है।