वैकुण्ठ चतुर्दशी को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार एक बार श्रीहरि विष्णु देवाधिदेव शंकर जी का पूजन करने के लिए काशी आए थे। यहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने 1000 स्वर्ण कमल पुष्प से भगवान शंकर के पूजन का संकल्प लिया। भगवान विष्णु जब श्री विश्वनाथ जी के मंदिर में पूजन करने लगे, तो शिवजी ने भगवान विष्णु की भक्ति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान विष्णु ने एक हजार पुष्प कमल भेंट करने का संकल्प लिया था, जब उन्होंने देखा कि एक कमल कम हो गया है, तो वे विचलित हो उठे। तभी उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल पुष्प के ही समान हैं। इसीलिए मुझे ‘कमल नयन’ और ‘पुंडरीकाक्ष’ के नाम से भी जाना जाता है। इस विचार के बाद भगवान श्री हरि विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने के लिए प्रस्तुत हुए।
भगवान विष्णु की इस अगाध भक्ति से भगावन शिव प्रसन्न हो गए, वह तुरंत ही वहां पर प्रकट हुए और श्रीहरि विष्णु से बोले- ‘हे विष्णु ! तुम्हारे समान इस पूरे संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। इसलिए आज मैं तुम्हें वचन देता हूं कि इस दिन जो भी तुम्हारी पूजा करेगा, वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त करेगा। आज का यह दिन ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ के नाम से जाना जाएगा। इसके अलावा भगवान शिव ने प्रसन्न होकर श्रीहरि विष्णु को करोड़ों सूर्य की कांति (तेज) के समान वाला सुदर्शन चक्र प्रदान किया। इसी कारण से ऐसा माना जाता है कि इस दिन मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत का पालन करता है, तो वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित कर लेता है।
इसके बाद देवर्षि नारद पूरे पृथ्वी लोक का भ्रमण कर वैकुण्ठ धाम पहुंचे, तो उनके चेहरे पर एक सवाल दिख रहा था। जिसे भांपते हुए श्रीहरि विष्णु ने पुछ लिया- ऋषिवर आपके चेहरे पर मुझे एक प्रश्न नजर आ रहा है, कृपया बताएं आप क्या पूछना चाहते हैं। नारद जी ने तुरंत ही कहा कि भगवन आपके अनन्य भक्त हैं, जिनमें से कई दिन रात आपका नाम जपते हैं, जिन्हें आसानी से वैकुण्ठ प्राप्त हो जाता है। लेकिन, कुछ लोग है जो दिन रात आपका नाम जपने में असमर्थ है, क्या उन्हें वैंकुंठ प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं है। इसके जबाव में श्री हरि विष्णु ने कहा कि जो भी व्यक्ति वैकुण्ठ चतुर्दशी का उपवास करेगा, उसे वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होगी। ऐसा माना जाता है कि तभी से वैकुण्ठ चतुर्दशी के इस व्रत का पालन किया जाने लगा है।
बोलिए श्री विष्णु भगवान की जय।।
हिंदू धर्म में भगवान शिव को सबसे शक्तिशाली और महान देवता माना गया है। वे जितने सरल, भोले और करुणामयी हैं, उतने ही रौद्र और क्रोधी भी हैं। शास्त्रों के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है और इस दिन भक्त व्रत रखकर उन्हें प्रसन्न करते हैं।
हिंदू धर्म में सोलह सोमवार व्रत को अत्यंत शुभ और फलदायक माना गया है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं अपने दांपत्य जीवन की सुख-शांति और समृद्धि के लिए करती हैं, वहीं कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए पूरी श्रद्धा से करती हैं।
सावन का महीना भगवान शिव के भक्तों के लिए विशेष होता है। यह महीना शिव भक्ति, व्रत, पूजा और जलाभिषेक का होता है। शिवजी को कई नामों से जाना जाता है - भोलेनाथ, शंकर, महादेव, रूद्र, शंभू आदि। लेकिन एक नाम जो बहुत खास और रहस्यमयी है, वह है नीलकंठ।
सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति के लिए सबसे पवित्र और शुभ माना जाता है। इस साल 11 जुलाई 2025 से सावन की शुरुआत हो रही है और यह 9 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान श्रद्धालु भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं, जलाभिषेक करते हैं और उनकी प्रिय वस्तुएं जैसे बेलपत्र, भांग और धतूरा चढ़ाते हैं।