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बधैया बाजे आँगने में (Badhaiya Baje Angane Mein)

बधैया बाजे आँगने में (Badhaiya Baje Angane Mein)

बधैया बाजे आँगने में,

बधैया बाजे आँगने मे ॥


चंद्रमुखी मृगनयनी अवध की,

तोड़त ताने रागने में,

बधैया बाजे आँगने मे ॥


प्रेम भरी प्रमदागन नाचे,

नूपुर बाँधे पायने में,

बधैया बाजे आँगने मे ॥


न्योछावर श्री राम लला जु,

नहिं कोऊ लाजत माँगने में,

बधैया बाजे आँगने मे ॥


सियाअली यह कौतुक देखत,

बीती रजनी जागने में,

बधैया बाजे आँगने मे ॥


बधैया बाजे आँगने में,

बधैया बाजे आँगने मे ॥

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तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी के दिन से सभी मंगल कार्य आरंभ करने की परंपरा है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं और उनके जागते ही चातुर्मास भी समाप्त होता है।

देव उठनी एकादशी कितने दीपक जलाएं

कार्तिक मास की एकादशी को देव उठनी एकादशी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और इस दिन से ही शादी-ब्याह जैसे मांगलिक कार्य की भी शुरुआत होती है।

देव उठनी एकादशी व्रत कथा

देव उठनी ग्यारस पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागकर एक बार फिर संसार के संचालन में लीन हो जाते हैं। इस दिन चातुर्मास भी खत्म होता है और सभी मांगलिक कार्य शुरू होते हैं।

देव उठनी ग्यारस पर थाली-सूप बजाने की परंपरा

एकादशी तिथि को भगवान श्री विष्णु की पूजा के लिए बेहद ही शुभ माना गया है। इसमें भी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी का महत्व और अधिक है।

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