बनवारी रे,
जीने का सहारा तेरा नाम रे,
मुझे दुनिया वालों से क्या काम रे ॥
झूठी दुनिया, झूठे बंधन,
झूठी है ये माया,
झूठा साँस का आना जाना,
झूठी है ये काया,
यहाँ साँचो तेरो नाम रे ।
बनवारी रे,
जीने का सहारा तेरा नाम रे,
मुझे दुनिया वालों से क्या काम रे ॥
रंग में तेरे, रंग गयी गिरधर,
छोड़ दिया जग सारा,
बन गयी तेरे प्रेम के जोगन,
ले के मन एकतारा,
मुझे प्यारा तेरा धाम रे ।
बनवारी रे,
जीने का सहारा तेरा नाम रे,
मुझे दुनिया वालों से क्या काम रे ॥
दर्शन तेरा, जिस दिन पाऊँ,
हर चिंता मिट जाये,
जीवन मेरा इन चरणों में,
आस की ज्योत जलाये,
मेरी बाँह पकड़ लो श्याम रे ।
बनवारी रे,
जीने का सहारा तेरा नाम रे,
मुझे दुनिया वालों से क्या काम रे ॥
प्रत्येक महीने की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। धार्मिक मत है कि जगत की देवी मां दुर्गा के चरण और शरण में रहने से साधक को सभी प्रकार के सुखों मिलते हैं।
सनातन धर्म में भीष्म अष्टमी का दिन अत्यंत शुभ माना गया है। यह महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, जिसमें अनेक शिक्षाएं निहित हैं। महाप्रतापी योद्धा भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था, जिसके कारण वे अपनी इच्छा से प्राण त्याग सकते थे।
भीष्म पितामह गंगा और महाराज शांतनु के आठवें पुत्र थे। गंगा ने अपने पहले सात पुत्रों को जन्म लेते ही नदी में प्रवाहित कर दिया था। इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
सनातन धर्म में एक साल में कुल 24 एकादशी आती है। इनमें से माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी मनाई जाती है। सनातन धर्म में एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होता है।