बस इतनी तमन्ना है,
बस इतनी तमन्ना है,
श्याम तुम्हे देखूं,
घनश्याम तुम्हे देखूं ॥
सिर मुकुट सुहाना हो,
माथे तिलक निराला हो,
गल मोतियन माला हो,
श्याम तुम्हे देखूं,
घनश्याम तुम्हे देखूं ॥
कानो में हो बाली,
लटके लट घुंघराली,
तेरे अधर पे मुरली हो,
श्याम तुम्हे देखूं,
घनश्याम तुम्हे देखूं ॥
बाजू बंद बाहों पे,
पैजनियाँ पाओं में,
होठों पे हसी कुछ हो,
श्याम तुम्हे देखूं,
घनश्याम तुम्हे देखूं ॥
दिन हो या अँधेरा हो,
चाहे शाम सवेरा हो,
सोऊँ तो सपनो में,
श्याम तुम्हे देखूं,
घनश्याम तुम्हे देखूं ॥
चाहे घर हो नंदलाला,
कीर्तन हो गोपाला,
हर जग के नज़ारे में,
श्याम तुम्हे देखूं,
घनश्याम तुम्हे देखूं ॥
कहता है कमल ऐ किशन,
सौगात मुझे यह दे,
जिस और नज़र फेरूँ,
श्याम तुम्हे देखूं,
घनश्याम तुम्हे देखूं ॥
बस इतनी तमन्ना हैं,
बस इतनी तमन्ना हैं,
श्याम तुम्हे देखूं,
घनश्याम तुम्हे देखूं ॥
एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चौत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है?
एक समय श्री महादेवजी पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में अमरावती नगरी में आए। वहां के राजा ने शिव मंदिर बनवाया था, जो कि अत्यंत भव्य एवं रमणीक तथा मन को शांति पहुंचाने वाला था। भ्रमण करते सम शिव-पार्वती भी वहां ठहर गए।
भगवान शिव की महिमा सुनकर एक बार ऋषियों ने सूत जी से कहा- हे सूत जी आपकी अमृतमयी वाणी और आशुतोष भगवान शिव की महिमा सुनकर तो हम परम आनन्दित हुए।
भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था।