भाव सुमन लेकर मैं बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो,
हे गणनायक शुभ वरदायक,
हे गणनायक शुभ वरदायक,
आकर सिर पर हाथ धरो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
विद्यावारिधि बुद्धिविधाता,
आप दया के सागर हो,
भक्तों के दुःख हरने वाले,
ना तुमसे करुणाकर हो,
रिद्धि सिद्धि के देने वाले,
हम पर भी उपकार करो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
लम्बोदर गजवदन विनायक,
विघ्न हरण कर लो सारे,
मोदक प्रिय मुदमंगल त्राता,
दुःख दारिद्र हरने वाले,
लाज तुम्हारे हाथ गजानन,
भव से बेड़ा पार करो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
‘आलूसिंह’ तेरी महिमा का,
पार नहीं कोई पाया,
त्रास हरो सांवल की सारी,
द्वार आपके ये आया,
दास तुम्हारे श्री चरणों का,
हम सबके भंडार भरो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
भाव सुमन लेकर मैं बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो,
हे गणनायक शुभ वरदायक,
हे गणनायक शुभ वरदायक,
आकर सिर पर हाथ धरो,
भाव सुमन लेकर मै बैठा,
गौरी सुत स्वीकार करो ॥
मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती मनाई जाती है, जिसे कालभैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन काशी के कोतवाल कहे जाने वाले भगवान काल भैरव की पूजा का विधान है।
हर महीने की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है, लेकिन मार्गशीर्ष मास की चतुर्थी तिथि को विशेष रूप से गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन तंत्र-मंत्र के देवता काल भैरव की पूजा की जाती है, जो भगवान शिव के रौद्र रूप हैं।
काशी के राजा भगवान विश्वनाथ और कोतवाल भगवान काल भैरव की जोड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।