चोला माटी के हे राम,
एकर का भरोसा,
चोला माटी के हे रे,
चोला माटी के हे हो,
हाय चोला माटी के हें राम,
एकर का भरोसा,
चोला माटी के हे रे ॥
द्रोणा जइसे गुरू चले गे,
करन जइसे दानी संगी,
करन जइसे दानी,
बाली जइसे बीर चले गे,
रावन कस अभिमानी,
चोला माटी के रे,
एकर का भरोसा,
चोला माटी के हे रे ॥
कोनो रिहिस ना कोनो रहय भई,
आही सब के पारी,
एक दिन आही सब के पारी,
काल कोनो ल छोंड़े नहीं संगी,
राजा रंक भिखारी,
चोला माटी के रे,
एकर का भरोसा,
चोला माटी के हे रे ॥
भव से पार लगे बर हे ते,
हरि के नाम सुमर ले संगी,
हरि के नाम सुमर ले,
ए दुनिया मा आके रे पगला,
जीवन मुक्ती कर ले,
चोला माटी के रे,
एकर का भरोसा,
चोला माटी के हे रे ॥
चोला माटी के हे राम,
एकर का भरोसा,
चोला माटी के हे रे,
चोला माटी के हे हो,
हाय चोला माटी के हें राम,
एकर का भरोसा,
चोला माटी के हे रे ॥
सनातन धर्म में सभी तिथि किसी ना किसी देवी-देवता को ही समर्पित है। इसी प्रकार से हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होती है।
“बोर भाजी आंवला, उठो देव सांवला।” ये कहावत तो हर किसी ने अपने घर में सुनी होगी। दरअसल, ये वही कहावत है जिसके द्वारा हर किसी के घर में देव उठनी ग्यारस के दिन भगवान का आह्वान होता है।
चातुर्मास यानी चौमासा में सारे मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। वहीं, आषाढ़ माह की आखिरी एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है।
सनातन धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है। साल में दो एकादशी बड़ी एकादशी मानी जाती है, जिसका महत्व साल भर में पड़ने वाली सभी एकादशी के बराबर होता है।