गजमुखं द्विभुजं देवा लम्बोदरं,
भालचंद्रं देवा देव गौरीशुतं ॥
कौन कहते है गणराज आते नही,
भाव भक्ति से उनको बुलाते नही ॥
कौन कहते है गणराज खाते नही,
भोग मोदक का तुम खिलाते नही ॥
कौन कहते है गणराज सोते नही,
माता गौरा के जैसे सुलाते नही ॥
कौन कहते है गणराज नाचते नही,
रिद्धि सिद्धि के जैसे नचाते नही ॥
गजमुखं द्विभुजं देवा लम्बोदरं,
भालचंद्रं देवा देव गौरीशुतं ॥
ऊँचे ऊँचे पर्वत पे,
शारदा माँ का डेरा है,
उनकी रेहमत का झूमर सजा है ।
मुरलीवाले की महफिल सजी है ॥
उठ जाग मुसाफिर भोर भई,
अब रैन कहाँ जो सोवत है ।
उठ खड़ा हो लक्ष्मण भैया जी ना लगे,
लखनवा नही जाना की जी ना लगे ॥