घनश्याम तुम ना आये,
जीवन ये बीता जाये ॥
तेरा वियोग प्यारे,
अब तो सहा ना जाये,
एक बार आ भी जाओ,
बैठे हो क्यो छिपाये,
घनश्याम तुम ना आए,
जीवन ये बीता जाये ॥
मैं ढूढ़ती थी दर दर,
पर तुम नजर ना आये,
मुझे क्या पता था मेरे,
इस दिल में हो समाये
घनश्याम तुम ना आए,
जीवन ये बीता जाये ॥
जीवन की संध्या बेला,
अब आ चुकी हैं प्रीतम,
उस वक़्त आ भी जाना,
जब प्राण तन से जाये,
घनश्याम तुम ना आए,
जीवन ये बीता जाये ॥
घनश्याम तुम ना आये,
जीवन ये बीता जाये ॥
इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर बोले- हे दशी जनार्दन आपको नमस्कार है। हे देवेश ! मनुष्यों के कल्याण के लिए मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का नाम एवं माहात्म्य वर्णन कर यह बतलाइये कि उसकीएकादशी माहात्म्य-भाषा विधि क्या है?
एक समय दालभ्यजी ने प्रजापति ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य जी से प्रश्न किया कि प्रभो! क्या कोई ऐसी भी शक्ति या उपाय है कि जिसके करने से ब्रह्महत्या करने इत्यादि के कुटिल कर्मों के पापों से मनुष्य सरलता पूर्वक छूट जाय भगवन् !
पाण्डुनन्दन भगवान् कृष्ण से हाथ जोड़ कर नम्रता पूर्वक बोले हे नाथ ! अब आप कृपा कर मुझसे माघ शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिए उस व्रत को करने से क्या पुण्य फल होता है।
इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर ने फिर भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा कि अब आप कृपाकर फाल्गुन कृष्ण एकादशी का नाम, व्रत का विधान और माहात्म्य एवं पुण्य फल का वर्णन कीजिये मेरी सुनने की बड़ी इच्छा है।