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गौरा ने घोट कर, पीस कर छान कर(Gora Ne Ghot Kar Piskar Chhankar)

गौरा ने घोट कर, पीस कर छान कर(Gora Ne Ghot Kar Piskar Chhankar)

गौरा ने घोट कर,

पीस कर छान कर,

शिव को भंगिया पिलाई,

मजा आ गया,

छोड़ कैलाश को,

पहुंचे शमशान में,

गांजे की दम लगायी,

मजा आ गया ॥


जब नशा भांग,

गांजे का चढ़ने लगा,

भोला नचने लगे,

डमरू बजने लगा,

जल चुकी थी चिताएं,

जो शमशान में,

उनकी भस्मी रमाई,

मजा आ गया ॥


बदी फागुन चतुर्दश,

तिथी आई है,

शिव से गौरा मिलन,

की घड़ी आई है,

शिवजी दूल्हा बने,

गौरा दुल्हन बनी,

ऐसी शादी रचाई,

मजा आ गया ॥


भोला धनवान है,

न तो कंगाल है,

शिव महादेव हैं,

शिव महाकाल है,

शिव के चरणों में हम,

आ गये हैं पदम्,

राह मुक्ति की पाई,

मजा आ गया ॥


गौरा ने घोट कर,

पीस कर छान कर,

शिव को भंगिया पिलाई,

मजा आ गया,

छोड़ कैलाश को,

पहुंचे शमशान में,

गांजे की दम लगायी,

मजा आ गया ॥

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स्कंद षष्ठी व्रत कथा

स्कंद षष्ठी का व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, साल 2025 की पहली स्कन्द षष्ठी 05 जनवरी को मनाई जाएगी।

स्कंद षष्ठी पारण विधि

हर माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। स्कंद देव यानी भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती हैं।

स्कन्द षष्ठी व्रत नियम

हर माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में षष्ठी तिथि को महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह तिथि शिव-पार्वती जी के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है।

तुलसी की पूजा विधि

हिंदू धर्म में तुलसी को बेहद पुजनीय माना जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया और हरिप्रिया भी कहा जाता है। इतना ही नहीं, तुलसी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है।

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