गोविंद चले चरावन धेनु ।
गृह गृह तें लरिका सब टेरे
शृंगी मधुर बजाई बेनु ॥
सुरभी संग सोभित द्वै भैया
लटकत चलत नचावत नेंन ।
गोप वधू देखन सब निकसीं
कियो संकेत बताई सेंन ॥
ब्रजपति जब तें बन पाउँ धारे
न परत ब्रजजन पल री चैन ।
तजि गृह काज विकली सी डोलत
दिन अरि जाए हो एक बैन ।
जसोमति पाक परोसि कहति सखि
तूं ले जाउ बेगि इह देंन ।
गोविंद लिए बिरहनी दौरी,
तलफत जैसे जल बिनु मेंन ॥
गोविंद चले चरावन धेनु ।
गृह गृह तें लरिका सब टेरे
शृंगी मधुर बजाई बेनु ॥
ये श्री बालाजी महाराज है,
रखते भक्तो की ये लाज है,
यह तो प्रेम की बात है उधो,
बंदगी तेरे बस की नहीं है।
ये तुम्हारी है कृपा माँ,
तेरा दर्शन हो रहा,
यही रात अंतिम यही रात भारी,
बस एक रात की अब कहानी है सारी,