नवीनतम लेख
गुरु बिन घोर अँधेरा संतो,
गुरु बिन घोर अँधेरा जी ।
बिना दीपक मंदरियो सुनो,
अब नहीं वास्तु का वेरा हो जी ॥
जब तक कन्या रेवे कवारी,
नहीं पुरुष का वेरा जी ।
आठो पोहर आलस में खेले,
अब खेले खेल घनेरा हो जी ॥
मिर्गे री नाभि बसे किस्तूरी,
नहीं मिर्गे को वेरा जी ।
रनी वनी में फिरे भटकतो,
अब सूंघे घास घणेरा हो जी ॥
जब तक आग रेवे पत्थर में,
नहीं पत्थर को वेरा जी ।
चकमक छोटा लागे शबद री,
अब फेके आग चोपेरा हो जी ॥
रामानंद मिलिया गुरु पूरा,
दिया शबद तत्सारा जी ।
कहत कबीर सुनो भाई संतो,
अब मिट गया भरम अँधेरा हो जी ॥
........................................................................................................'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।