हर ग्यारस खाटू में अमृत जो बरसता है (Har Gyaras Khatu Me Amrit Jo Barasta Hai)

हर ग्यारस खाटू में,

अमृत जो बरसता है,

उस अमृत को पीने,

हर भक्त पहुँचता है,

हर ग्यारस खाटु में,

अमृत जो बरसता है ॥


यहाँ भजनों की गंगा,

अमृत सी बहती है,

सबके दिल की बातें,

बाबा से कहती है,

इन बूंदों को पीकर,

हर भक्त थिरकता है,

उस अमृत को पीने,

हर भक्त पहुँचता है,

हर ग्यारस खाटु में,

अमृत जो बरसता है ॥


भजनों की ये बुँदे,

जब कान में पड़ जाए,

हर प्रेमी बाबा का,

मेरे श्याम से जुड़ जाए,

फिर होश रहे ना उसे,

हँसता है सिसकता है,

उस अमृत को पीने,

हर भक्त पहुँचता है,

हर ग्यारस खाटु में,

अमृत जो बरसता है ॥


ये भजनों की गंगा,

हमें श्याम से मिलवाए,

यहाँ डुबकी लगाने को,

मेरा श्याम चला आए,

अमृत ये भजनों का,

जब जब भी छलकता है,

उस अमृत को पीने,

हर भक्त पहुँचता है,

हर ग्यारस खाटु में,

अमृत जो बरसता है ॥


इस अमृत में प्यारे,

तुम जहर नहीं घोलो,

कहता ‘रोमी’ तोलो,

तुम तोल के फिर बोलो,

इसे पावन रहने दो,

विश्वास भटकता है,

उस अमृत को पीने,

हर भक्त पहुँचता है,

हर ग्यारस खाटु में,

अमृत जो बरसता है ॥


हर ग्यारस खाटू में,

अमृत जो बरसता है,

उस अमृत को पीने,

हर भक्त पहुँचता है,

हर ग्यारस खाटु में,

अमृत जो बरसता है ॥

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रुक्मिणी अष्टमी की कथा

पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। देवी रुक्मिणी मां लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं और भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थीं।

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कैसे कह दूँ,
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श्रीमन नारायण नारायण हरी हरी.(Shri Man Narayan Narayan Hari Hari)

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