हे गोवर्धन गिरधारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी,
तेरी परिक्रमा जो करले,
मिट जाए विपदा सारी,
हे गोवर्धंन गिरधारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी ॥
है सात कोस की परिक्रमा,
बड़ी भारी है इनकी महिमा,
कानो में कुण्डल चमकत है,
ठोड़ी पे हिरा दमकत है,
तेरी झांकी बड़ी मनोहारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी,
हे गोवर्धंन गिरधारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी ॥
आज अन्नकूट का भोग लगा,
तेरा छप्पन भोग क्या खूब सजा,
इतने व्यंजन बनवाए है,
घर घर से सब ले आए है,
करे नृत्य सकल नर नारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी,
हे गोवर्धंन गिरधारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी ॥
कुछ तो माखन को बल बढ्यो,
कुछ ग्वालन करि सहाय,
श्री राधे जु की कृपा ते,
मैंने गिरिवर लियो उठाय,
यूँ बोले मदन मुरारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी,
हे गोवर्धंन गिरधारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी ॥
हे गोवर्धन गिरधारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी,
तेरी परिक्रमा जो करले,
मिट जाए विपदा सारी,
हे गोवर्धंन गिरधारी,
तुझे पूजे दुनिया सारी ॥
मूर्ति स्वयंभू शारदा, मैहर आन विराज ।
माला, पुस्तक, धारिणी, वीणा कर में साज ॥
देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार।
चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥
विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।
अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।
जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि,
गणपति जननी पार्वती, अम्बे, शक्ति, भवानि ।