हे शेरावाली नजर एक कर दो,
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो,
अपने ही रंग में मेरा चोला रंग दो,
हे शेरावाली नजर मुझपे कर दो,
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो ॥
तेरे सिवा ना मुझे कुछ भी भाए,
देखूं जिधर भी नज़र तू ही आए,
मुझको दीवाना कर इस कदर दो,
हे शेरावाली नजर मुझपे कर दो,
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो ॥
रूठे भले माँ ये सारा जमाना,
हे जग की मालिक ना तुम रूठ जाना,
सिर पे तू मेरे माँ हाथ धर दो,
हे शेरावाली नजर मुझपे कर दो,
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो ॥
दे दो मुझे भीख में अपनी भक्ति,
चढ़ के ना उतरे माँ दो ऐसी मस्ती,
फैलाए कबसे खड़ा झोली भर दो,
हे शेरावाली नजर मुझपे कर दो,
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो ॥
सोए जगा दो हे माँ भाग्य मेरे,
गाता रहूं बस भजन मैया तेरे,
‘राजू’ को मैया बस इतना वर दो,
हे शेरावाली नजर मुझपे कर दो,
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो ॥
हे शेरावाली नजर एक कर दो,
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो,
अपने ही रंग में मेरा चोला रंग दो,
हे शेरावाली नजर मुझपे कर दो,
हे मेहरवाली माँ मेहर एक कर दो ॥
वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाएं रखती हैं। इस दिन महिलाएं वटवृक्ष की पूजा, सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ और वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म की सबसे प्रमुख व्रत परंपराओं में से एक है, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और समृद्ध जीवन के लिए करती हैं। इस व्रत का वर्णन महाभारत, स्कंद पुराण, और व्रतराज जैसे शास्त्रों में विस्तार से मिलता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने आने वाली मासिक कार्तिगाई तिथि का विशेष धार्मिक महत्व होता है। विशेष रूप से दक्षिण भारत में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग में कुछ दिन विशेष संयोग और त्योहारों के कारण अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस साल 26 मई भी ऐसा ही एक दिन है, जब एक नहीं बल्कि चार बड़े धार्मिक पर्व एक साथ पड़ रहे हैं।