जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा,
हंस जब-जब उड़ा तब अकेला उड़ा ।
काल से बच ना पाएगा छोटा बड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
ठाट सारे पड़े के पड़े रह गये,
सारे धनवा गढ़े के गढ़े रेह गये,
अन्त मे लखपति को ना ढेला मिला,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
बेबसो को सताने से क्या फायदा,
झूठ अपजस कमाने से क्या फायदा,
दिल किसी का दुखाने से क्या फायदा,
नीम के सथ जेसे करेला जुड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
राज राजे रहे, ना वो रानी रही,
ना बुढ़ापा रहा, ना जवानी रही,
ये तो कहने को केवल कहानी रही,
चार दिन का जगत मे झमेला रहा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा,
हंस जब-जब उड़ा तब अकेला उड़ा ।
काल से बच ना पाएगा छोटा बड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
कोकिला व्रत हिंदू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन रखा जाने वाला एक विशेष व्रत है, जो विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस दिन देवी सीता के स्वरूप की पूजा की जाती है और कोयल (कोकिला) के प्रतीक रूप में स्त्रियां स्वयं को देवी के प्रति समर्पित करती हैं।
कोकिला व्रत हिंदू धर्म का एक अत्यंत श्रद्धा पूर्वक मनाया जाने वाला व्रत है, जो आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है, और इसे अखंड सौभाग्य, मनचाहे वर की प्राप्ति और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए महिलाएं करती हैं।
गुरु पूर्णिमा का पर्व हिंदू धर्म का एक अत्यंत पावन और श्रद्धा से जुड़ा उत्सव है, जो गुरु के प्रति समर्पण, श्रद्धा और कृतज्ञता को दर्शाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरु का पूजन कर उन्हें प्रणाम करते हैं और उनके आशीर्वाद से ज्ञान, विवेक और जीवन की दिशा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
गुरु पूर्णिमा, जिसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत पावन पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो भारतीय दर्शन, ज्ञान और अध्यात्म के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देने वाले महान ऋषि थे।