जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा,
हंस जब-जब उड़ा तब अकेला उड़ा ।
काल से बच ना पाएगा छोटा बड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
ठाट सारे पड़े के पड़े रह गये,
सारे धनवा गढ़े के गढ़े रेह गये,
अन्त मे लखपति को ना ढेला मिला,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
बेबसो को सताने से क्या फायदा,
झूठ अपजस कमाने से क्या फायदा,
दिल किसी का दुखाने से क्या फायदा,
नीम के सथ जेसे करेला जुड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
राज राजे रहे, ना वो रानी रही,
ना बुढ़ापा रहा, ना जवानी रही,
ये तो कहने को केवल कहानी रही,
चार दिन का जगत मे झमेला रहा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
जिंदगी में हजारों का मेला जुड़ा,
हंस जब-जब उड़ा तब अकेला उड़ा ।
काल से बच ना पाएगा छोटा बड़ा,
हंस जब जब उड़ा तब अकेला उड़ा ॥
पहले बतलाये नियमके अनुसार आसनपर प्राङ्घख बैठ जाय। जलसे प्रोक्षणकर शिखा बाँधे ।
एकादशी पूजन में विशेष तौर से भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है इस दिन पवित्र नदी या तालाब या कुआं में स्नान करके व्रत को धारण करना चाहिए
यह व्रत अति प्राचीन है। इसका प्रचलन महाभारत से भी पूर्व का है। यह व्रत सौभाग्यवती महिलाओं के लिए उत्तम माना गया है।
भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी का किया जाने वाला व्रत