प्रातःकाल की प्रार्थना
कर प्रणाम तेरे चरणों में लगता हूं अब तेरे काज ।
पालन करने को आज्ञा तब मैं नियुक्त होता हूं आज ॥
अन्तर में स्थित रह मेरी बागडोर पकड़े रहना ।
निपट निरंकुश चंचल मन को सावधान करते रहना ॥
अन्तर्यामी को अन्तः स्थित देख सशंकित होवे मन ।
पाप वासना उठते ही हो, नाश लाज से वह जल भुन ॥
जीवों का कलरव जो दिन भर सुनने में मेरे आवे ।
तेरा ही गुनमान जान मन प्रमुदित हो अति सुख पावे ॥
तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि ! तुझमें यह सारा संसार ।
इसी भावना से अन्तर भर मिलूं सभी से तुझे निहार ॥
प्रतिपल निज इन्द्रिय समूह से जो कुछ भी आचार करूं ।
केवल तुझे रिझाने, को बस तेरा ही व्यवहार करूं ॥
भवाय चन्द्रचूडाय निर्गुणाय गुणात्मने ।
ब्रह्म लोके च ये सर्पाःशेषनागाः पुरोगमाः।
लाङ्गूलमृष्टवियदम्बुधिमध्यमार्ग , मुत्प्लुत्ययान्तममरेन्द्रमुदो निदानम्।
श्रीमत्पयोनिधिनिकेतन चक्रपाणेभोगीन्द्रभोगमणिरञ्जितपुण्यमूर्ते।