माँ की लाल रे चुनरिया,
देखो लहर लहर लहराए,
माँ की नाक की नथनिया,
दमदम दमदम दमकी जाए,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
मंदिर लाल ध्वजाएं न्यारी,
देखो फर फर फर फेहराये,
लाखो नर नारी दर जाए,
माँ की जय जय कार लगाएं,
ऊँचे पर्वत पे महारानी,
बैठी है आसान को सजाये,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
माँ सोलह सिंगार सजाये,
मोहिनी मूरत मन को भाये,
होती आरती शाम सवेरे,
जगमग माँ की ज्योत जलाएं,
हनुमत भैरो चंवर दुराये,
माँ की शोभा वर्णी ना जाए,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
तूने भक्त अनेको उबारे,
माँ लाखों दानव संहारे,
जो भी शरण में तेरे आये,
मैया भव से पार उतारे,
तेरी लीला सभी बखाने,
सारा जग तेरे गुण गाये,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
माँ तुमने संसार रचाया,
कण कण माँ तुमने उपजाया,
हर प्राणी में तेरा साया,
सारा जग माँ तेरी माया,
मेरा तन मन मैया तेरा,
बस तेरे ही माँ गुण गाये,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
तेरे दर का प्यार वो पाएं,
मैया तू जिसको बुलवाये,
जिसको दाती माँ अपनाये,
उसको कभी न कष्ट सताये,
मैया एक सिवा दर तेरे,
दूजा कोई दर ना भाये,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
महिमा तेरी वेद बखाने,
ब्रम्हा विष्णु शंकर माने,
नारद लेके वीणा तेरी,
तीनो लोक तुझे बखाने,
राधा सीता तू सावित्री,
तेरी गाथा कहीं ना जाए,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
शुम्भ निशुम्भ को तुमने मारा,
मैया जग का कष्ट निवारा,
ध्यानु और आल्हा ने ध्याया,
तारा को माँ भव से तारा,
वो जगराता हो ना पूरा,
जिसमे तेरे को ना ध्याये,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
माँ की लाल रे चुनरिया,
देखो लहर लहर लहराए,
माँ की नाक की नथनिया,
दमदम दमदम दमकी जाए,
माँ की लाल रे चुनरियाँ,
देखो लहर लहर लहराए ॥
मुंडन संस्कार के संदर्भ में जून का महीना विशेष महत्व रखता है, खासकर 2025 में। जिस तरह जून की गर्मी जीवन में जोश और ऊर्जा लाती है, उसी तरह इस महीने में किए गए संस्कार से बच्चे को आशीर्वाद और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
यदि आप जून 2025 में कर्णवेध संस्कार या कान छेदन करने का प्लान बना रहे हैं, तो जून महीने में कुल 9 शुभ मुहूर्त हैं। इन शुभ मुहूर्तों को ध्यान में रखकर आपका संस्कार सफल और शुभ होगा।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से एक अत्यंत पवित्र और आवश्यक संस्कार है। यह संस्कार बालक के जीवन में धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान की शुरुआत का प्रतीक होता है।
हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों को जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव की आध्यात्मिक नींव माना गया है। इनमें से एक है अन्नप्राशन संस्कार, जो शिशु को पहली बार अन्न (ठोस भोजन) देने का विशेष अवसर होता है।