मैं कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जानो,
मैं क्या चाहता हूँ,
ये तुम ही जानो,
मै कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जान ॥
ना दीनता है ना भाव भक्ति,
ना कुछ भजन है ना आत्मशक्ति,
मैं क्या देखता हूँ,
ये तुम ही जानो,
मै कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जानो ॥
दुनिया से मुझको फुर्सत ना मिलती,
तक़दीर की मेरी अटकन ना मिटती,
मैं क्या मांगता हूँ,
ये तुम ही जानो,
मै कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जानो ॥
यही दर्द दिल में तड़पन है भारी,
तेरे दर पे आया आगे मर्जी तुम्हारी,
मैं पागल बना हूँ,
ये तुम ही जानो,
मै कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जानो ॥
मैं कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जानो,
मैं क्या चाहता हूँ,
ये तुम ही जानो,
मै कितना अधम हूँ,
ये तुम ही जानो ॥
श्री दुर्गा द्वात्रिंशत नाम माला" देवी दुर्गा को समर्पित बत्तीस नामों की एक माला है। यह बहुत ही प्रभावशाली स्तुति है। मनुष्य सदा किसी न किसी भय के अधीन रहता है।
देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्, माँ दुर्गा का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। इसे आदि गुरु शंकराचार्य ने लिखा था। यह उनकी सर्वश्रेष्ठ और कानों को सुख देने वाली स्तुतियों में से एक है।
सिद्ध-कुञ्जिका स्तोत्रम् श्रीरूद्रयामल के मन्त्र से सिद्ध है और इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं होती है। इस स्तोत्र को परम कल्याणकारी और चमत्कारी माना जाता है।
जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय!
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय।