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श्यामा आन बसो वृंदावन में,
मेरी उमर बीत गई गोकुल में,
मैं तो बन के दुल्हन आज सजी,
बस तुम ही हो मेरे तन मन में,
श्यामा आन बसो वृंदावन में,
मेरी उमर बीत गई गोकुल में ॥
मैं दर दर तुझको खोज रही,
हाँ पल पल तुझको सोच रही,
तेरी प्रीत में जीवन अर्पण है,
मेरी भक्ति का तू दर्पण है,
श्यामा आन बसो वृंदावन में,
मेरी उमर बीत गई गोकुल में ॥
जब मधुर मुरलिया बाजेगी,
अधरों पर खुशियाँ साजेगी,
तेरी छवि जो निहारूँ अंतस में,
तेरा वास दिखे मुझे कण कण में,
श्यामा आन बसो वृंदावन में,
मेरी उमर बीत गई गोकुल में ॥
श्यामा रास रचाने आओ ना,
प्रभु नटखट लीला दिखाओ ना,
‘स्वस्ति’ नाम जपे श्यामा श्यामा,
मिले सबको पनाह तेरे चरणन में,
श्यामा आन बसो वृंदावन में,
मेरी उमर बीत गई गोकुल में ॥
श्यामा आन बसो वृंदावन में,
मेरी उमर बीत गई गोकुल में,
मैं तो बन के दुल्हन आज सजी,
बस तुम ही हो मेरे तन मन में,
श्यामा आन बसो वृंदावन में,
मेरी उमर बीत गई गोकुल में ॥
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