मन की मुरादें, पूरी कर माँ,
दर्शन करने को मैं तो आउंगी ।
तेरा दीदार होगा, मेरा उद्धार होगा,
हलवे का भोग मैं लगाउंगी ।
तू है दाती दान देदे,
मुझ को अपना जान कर ।
भर दे मेरी झोली खाली,
दाग लगे ना तेरी शान पर ।
सवा रुपया और नारीयल,
मैं तेरी भेंट चढ़ाउंगी ॥
मन की मुरादें, पूरी कर माँ,
दर्शन करने को मैं तो आउंगी ।
तेरा दीदार होगा, मेरा उद्धार होगा,
हलवे का भोग मैं लगाउंगी ।
छोटी छोटी कन्याओं को,
भोग लगाऊं भक्ति भाव से ।
तेरा जगराता कराऊं,
मैं तो बड़े चाव से ।
लाल द्वजा लेकर के माता,
तेरे भवन पे लहराउंगी ॥
मन की मुरादें, पूरी कर माँ,
दर्शन करने को मैं तो आउंगी ।
तेरा दीदार होगा, मेरा उद्धार होगा,
हलवे का भोग मैं लगाउंगी ।
महिमा तेरी बड़ी निराली,
पार न कोई पाया है ।
मैंने सुना है, ब्रह्मा, विष्णु शिव ने,
तेरा गुण गाया है ।
मेरी औकात क्या है,
तेरी माँ बात क्या है,
कैसे तुझ को भुलाउंगी ॥
मन की मुरादें, पूरी कर माँ,
दर्शन करने को मैं तो आउंगी ।
तेरा दीदार होगा, मेरा उद्धार होगा,
हलवे का भोग मैं लगाउंगी ।
लाल चोला लाल चुनरी,
लाल तेरे लाल हैं ।
तेरी जिस पर हो दया माँ,
वो तो मालामाल है ।
श्यामसुंदर और लक्खा बालक हैं तेरे,
उनको भी संग मैं लाउंगी ॥
मन की मुरादें, पूरी कर माँ,
दर्शन करने को मैं तो आउंगी ।
तेरा दीदार होगा, मेरा उद्धार होगा,
हलवे का भोग मैं लगाउंगी ।
हर माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में षष्ठी तिथि को महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह तिथि शिव-पार्वती जी के ज्येष्ठ पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है।
हिंदू धर्म में तुलसी को बेहद पुजनीय माना जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया और हरिप्रिया भी कहा जाता है। इतना ही नहीं, तुलसी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है।
हिंदू धर्म में तुलसी को बेहद पुजनीय माना जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया और हरिप्रिया भी कहा जाता है। इतना ही नहीं, तुलसी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है।
तुम्हे वंदना तुम्हें वंदना,
हे बुद्धि के दाता,