श्रद्धा रखो जगत के लोगो,
अपने दीनानाथ में ।
लाभ हानि जीवन और मृत्यु,
सब कुछ उस के हाथ में ॥
मारने वाला है भगवान,
बचाने वाला है भगवान ।
बाल ना बांका होता उसका,
जिसका रक्षक दयानिधान ॥
त्याग दो रे भाई फल की आशा,
स्वार्थ बिना प्रीत जोड़ो ।
कल क्या होगा इस की चिंता,
जगत पिता पर छोड़ो ।
क्या होनी है क्या अनहोनी,
सब का उसको ज्ञान ॥
मारने वाला है भगवान,
बचाने वाला है भगवान ।
बाल ना बांका होता उसका,
जिसका रक्षक दयानिधान ॥
जल थल अगन आकाश पवन पर,
केवल उसकी सत्ता।
प्रभु इच्छा बिना यहाँ पर,
हिल ना सके एक पत्ता ।
उसी का सौदा यहाँ पे होता,
उस की शक्ति महान ॥
मारने वाला है भगवान,
बचाने वाला है भगवान ।
बाल ना बांका होता उसका,
जिसका रक्षक दयानिधान ॥
जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर ।
ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
अतीत प्राचीन काल की बात है। एक बार पाण्डु पुत्र अर्जुन तब करने के लिए नीलगिरि पर्वत पर चले गए थे।
एक समय नैमिषीरण्य तीर्थ में शौनकादि 88 हजार ऋषियों ने श्री सूत जी से पूछा हे प्रभु! इस कलयुग में वेद-विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा।