संकट में झुँझन वाली की,
सकलाई देखि है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखि है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखि हैं ॥
कोई राह नज़र ना आए,
जब छाए गम के बादल,
सर पे महसूस किया है,
मैंने दादी का आँचल,
माँ की चुनड़ी मेरे सर पे,
माँ की चुनड़ी मेरे सर पे,
लहराई देखि है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखि हैं ॥
ये है तक़दीर हमारी,
जो तेरी शरण मिली है,
क़िस्मत से तू हम भक्तो की,
दादी तू कुलदेवी है,
मेरे सुख दुःख ने हरदम,
मेरे सुख दुःख ने हरदम,
माँ आई देखि है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखि हैं ॥
तूने तो दिया है दादी,
मुझको औकात से बढ़कर,
‘सौरभ मधुकर’ की तूने,
रख दी तक़दीर बदलकर,
हमने माँ के दरबार की,
हमने माँ के दरबार की,
सच्चाई देखि है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखि हैं ॥
संकट में झुँझन वाली की,
सकलाई देखि है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखि है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखि हैं ॥
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह साल का दसवां महीना होता है जो मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बाद शुरू होता है। वैदिक पंचाग के अनुसार, इस साल पौष माह की शुरुआत 16 दिसंबर से हो चुकी है।
हिंदू धर्म में पौष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रुक्मिणी अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान श्री कृष्ण की पत्नी देवी रुक्मिणी को समर्पित है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, रुक्मिणी अष्टमी पर ही द्वापर युग में विदर्भ के महाराज भीष्मक के यहां देवी रुक्मिणी जन्मी थीं।
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह साल का 10 वां, महीना होता है जो मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बाद शुरू होता है। वैदिक पंचाग के अनुसार इस साल पौष माह 16 दिसंबर से प्रारंभ हो चुकी है।
हिंदू पंचांग में दसवें माह को पौष कहते हैं। इस बार पौष मास की शुरुआत 16 दिसंबर से हो गई है जो 13 जनवरी तक रहेगी। इस मास में हेमंत ऋतु का प्रभाव रहता है।