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मेरी विपदा टाल दो आकर (Meri Vipda Taal Do Aakar)

मेरी विपदा टाल दो आकर (Meri Vipda Taal Do Aakar)

मेरी विपदा टाल दो आकर,

हे जग जननी माता ॥


तू वरदानी है,

आद भवानी है,

माँ तू वरदानी है,

आद भवानी है,

क्या में तेरा लाल नहीं हूँ,

क्या तू माँ नहीं मेरी,

फिर क्यों लगाई देरी,

तू ही कहदे है ये कैसा,

माँ बेटे का नाता,

शेरों वाली माता,

शेरों वाली माता ॥


में अज्ञानी हूँ,

मूरख प्राणी हूँ,

माँ में अज्ञानी हूँ,

मूरख प्राणी हूँ,

जिस पर भी तुमने,

ओ मेरी मैया,

दृष्टि दया की डाली,

उसकी मिटी कंगाली,

तेरे दर पे आकर प्राणी,

मुँह माँगा वर पाता,

मेहरो वाली माता,

हे जग जननी माता ॥


मात भवानी हो,

जग कल्याणी हो,

माँ मात भवानी हो,

जग कल्याणी हो,

लख्खा तेरे दर पे आया,

धूल चरण की पाने,

सोया भाग्य जगाने,

तेरी चौखट छोड़ के शर्मा,

और कहाँ अब जाता,

हे जग जननी माता ॥


मेरी विपदा टाल दो आकर,

हे जग जननी माता,

शेरों वाली माता,

मेहरो वाली माता ॥


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देव प्रबोधिनी एकादशी नाम कैसे हुआ?

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी होती है। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।

देव उठनी एकादशी पर निषेध काम

शास्त्रों के अनुसार देव उठनी एकादशी भगवान् श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना के लिए श्रेष्ट दिन है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तिथि को देव उठनी एकादशी मनाई जाती है।

एकादशी में देवों को जगाने के मंत्र

पौराणिक मान्यता है कि देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जाग कर एक बार पुनः संसार के संचालन की कमान अपने हाथों में ले लेते हैं।

देवउठनी एकादशी पर जरूर करें ये उपाय

सनातन धर्म में सभी तिथि किसी ना किसी देवी-देवता को ही समर्पित है। इसी प्रकार से हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होती है।

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