म्हारी झुँझन वाली माँ,
पधारो कीर्तन में,
कीर्तन में माँ कीर्तन में,
भक्ता के घर आँगन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
चाव चढ्यो है भारी मन में,
इब ना देर करो आवन में,
थारी कद से उडीका बाट,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
थारी पावन ज्योत जगाकर,
थारे आगे शीश झुकाकर,
म्हे जोड़के बैठ्या हाथ,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
थारो कीर्तन राख्यो भारी,
जी में आई दुनिया सारी,
भगता री राखो लाज,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
‘सोनू’ थारा ध्यान लगावे,
मीठा मीठा भजन सुनावे,
म्हारी सुन लो थे अरदास,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
म्हारी झुँझन वाली माँ,
पधारो कीर्तन में,
कीर्तन में माँ कीर्तन में,
भक्ता के घर आँगन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
रथ सप्तमी सनातन हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। यह माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। 2025 में यह त्योहार 4 फरवरी को मनाई जाएगी।
माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी पर सूर्यदेव की पूजा की जाती है। रथ सप्तमी को भानु सप्तमी और अचला सप्तमी भी कहा जाता है। भानु सप्तमी के दिन भगवान भास्कर की पूजा करने से आरोग्य का वरदान मिलता है।
रथ-सप्तमी के दिन सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि अगर सूर्यदेव की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ किया जाए तो व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य के साथ मान-सम्मान में भी वृद्धि हो सकती है।
स्कंद षष्ठी का पर्व भगवान शिव के बड़े पुत्र, भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधिवत पूजा करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सकती है।