म्हारी झुँझन वाली माँ,
पधारो कीर्तन में,
कीर्तन में माँ कीर्तन में,
भक्ता के घर आँगन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
चाव चढ्यो है भारी मन में,
इब ना देर करो आवन में,
थारी कद से उडीका बाट,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
थारी पावन ज्योत जगाकर,
थारे आगे शीश झुकाकर,
म्हे जोड़के बैठ्या हाथ,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
थारो कीर्तन राख्यो भारी,
जी में आई दुनिया सारी,
भगता री राखो लाज,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
‘सोनू’ थारा ध्यान लगावे,
मीठा मीठा भजन सुनावे,
म्हारी सुन लो थे अरदास,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
म्हारी झुँझन वाली माँ,
पधारो कीर्तन में,
कीर्तन में माँ कीर्तन में,
भक्ता के घर आँगन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में ॥
इस साल होली का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा। आपको बता दें कि होली के ठीक दो दिन बाद राहु और केतु अपना नक्षत्र बदलेंगे।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और चंद्र ग्रहण दोनों को बहुत ही अशुभ घटनाएँ माना जाता है। इनका असर न केवल देश-दुनिया पर, बल्कि राशिचक्र की सभी राशियों पर भी पड़ता है।
मसान होली दो दिवसीय त्योहार माना जाता है। मसान होली चिता की राख और गुलाल से खेली जाती है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर साधु-संत इकट्ठा होकर शिव भजन गाते हैं और नाच-गाकर जीवन-मरण का जश्न मनाते हैं और साथ ही श्मशान की राख को एक-दूसरे पर मलते हैं और हवा में उड़ाते हैं। इस दौरान पूरी काशी शिवमय हो जाती है और हर तरफ हर-हर महादेव का नाद सुनाई देता है।
होली का पर्व हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार रंगों के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी प्रतीक है। होलिका दहन से पहले पूजा करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।