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श्लोक:
अखंड-मंडलाकारं
व्याप्तम येन चराचरम
तत्पदं दर्शितं येन
तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु,
गुरुर देवो महेश्वरः,
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा,
तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
मोहे लागी लगन गुरु चरणन की,
गुरु चरणन की, गुरु चरणन की,
मोहे लागी लगन गुरु चरणन की ॥
चरण बिना मुझे कुछ नहीं भाये,
जग माया सब स्वपनन की,
मोहें लागी लगन गुरु चरणन की ॥
भव सागर सब सूख गए है,
फिकर नाही मोहे तरनन की,
मोहें लागी लगन गुरु चरणन की ॥
आत्म ज्ञान दियो मेरे सतगुरु,
पीड़ा मिटी भव मरनन की,
मोहें लागी लगन गुरु चरणन की ॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,
आस बंधी गुरु चरणन की,
मोहें लागी लगन गुरु चरणन की ॥
मोहें लागी लगन गुरु चरणन की,
गुरु चरणन की, गुरु चरणन की,
मोहे लागी लगन गुरु चरणन की ॥
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