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मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना (Mujhe Ras Agaya Hai Tere Dar Pe Sar Jhukana)

मुझे रास आ गया है, तेरे दर पे सर झुकाना (Mujhe Ras Agaya Hai Tere Dar Pe Sar Jhukana)

मुझे रास आ गया है,

तेरे दर पे सर झुकाना ।

तुझे मिल गया पुजारी,

मुझे मिल गया ठिकाना ॥


मुझे कौन जानता था,

तेरी बंदगी से पहले ।

तेरी याद ने बना दी,

मेरी ज़िन्दगी फ़साना ॥


मुझे इसका गम नहीं है,

की बदल गया ज़माना ।

मेरी ज़िन्दगी के मालिक,

कहीं तुम बदल न जाना ॥


यह सर वो सर नहीं है,

जिसे रख दूँ फिर उठा लूं ।

जब चढ़ गया चरण में,

आता नहीं उठाना ॥


तेरी सांवरी सी सुरत,

मेरे मन में बस गयी है ।

ऐ सांवरे सलोने,

अब और ना सताना ॥


दुनियां की खा के ठोकर,

मैं आया तेरे द्वारे ।

मेरे मुरली वाले मोहन,

अब और ना सताना ॥


मेरी आरजु यही है,

दम निकले तेरे दर पे ।

अभी सांस चल रही है,

कहीं तुम चले ना जाना ॥


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क्यों मनाई जाती है गणाधिप संकष्टी चतुर्थी, जानें इस दिन का महत्व

हर महीने की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है, लेकिन मार्गशीर्ष मास की चतुर्थी तिथि को विशेष रूप से गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है।

काल भैरव की कथा

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