मुझे रास आ गया है,
तेरे दर पे सर झुकाना ।
तुझे मिल गया पुजारी,
मुझे मिल गया ठिकाना ॥
मुझे कौन जानता था,
तेरी बंदगी से पहले ।
तेरी याद ने बना दी,
मेरी ज़िन्दगी फ़साना ॥
मुझे इसका गम नहीं है,
की बदल गया ज़माना ।
मेरी ज़िन्दगी के मालिक,
कहीं तुम बदल न जाना ॥
यह सर वो सर नहीं है,
जिसे रख दूँ फिर उठा लूं ।
जब चढ़ गया चरण में,
आता नहीं उठाना ॥
तेरी सांवरी सी सुरत,
मेरे मन में बस गयी है ।
ऐ सांवरे सलोने,
अब और ना सताना ॥
दुनियां की खा के ठोकर,
मैं आया तेरे द्वारे ।
मेरे मुरली वाले मोहन,
अब और ना सताना ॥
मेरी आरजु यही है,
दम निकले तेरे दर पे ।
अभी सांस चल रही है,
कहीं तुम चले ना जाना ॥
हर महीने की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है, लेकिन मार्गशीर्ष मास की चतुर्थी तिथि को विशेष रूप से गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन तंत्र-मंत्र के देवता काल भैरव की पूजा की जाती है, जो भगवान शिव के रौद्र रूप हैं।
काशी के राजा भगवान विश्वनाथ और कोतवाल भगवान काल भैरव की जोड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शास्त्रों में भगवान काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है।