आसरा इस जहाँ का मिले न मिले,
मुझे तेरा सहारा सदा चाहिए ॥
चाँद तारे फलक पर दिखे ना दिखे,
मुझ को तेरा नज़ारा सदा चाहिए,
धन दौलत जहाँ की मिले ना मिले,
सतगुरु तेरे चरणों की रज चाहिए ॥
यहाँ खुशिया हैं कम, और ज्यादा है गम,
जहाँ देखो वहीँ है देखो भरम ही भरम,
मेरी महफ़िल में शम्मा जले ना जले,
मेरे दिल में उजाला तेरा चाहिए ॥
कभी वैराग है, कभी अनुराग है,
यहाँ बदले हैं माली वही बाग़ है,
मेरी चाहत की दुनिया बसे ना बसे,
मेरे दिल में बसेरा तेरा चाहिए ॥
मेरी धीमी है चाल, और पथ है विशाल,
हर कदम पर मुसीबत अब तू ही संभाल,
पैर मेरे थकें हैं, चले ना चले,
मेरे दिल में इशारा तेरा चाहिए ॥
कभी बैराग है, कभी अनुराग है,
जिन्दगी बिन धुंए की अजब आग है,
मान सम्मान जग में मिले ना मिले,
बस कृपा होनी बाबा तेरी चाहिए ॥
आसरा इस जहाँ का मिले न मिले,
मुझे तेरा सहारा सदा चाहिए ॥
एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चौत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है?
एक समय श्री महादेवजी पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में अमरावती नगरी में आए। वहां के राजा ने शिव मंदिर बनवाया था, जो कि अत्यंत भव्य एवं रमणीक तथा मन को शांति पहुंचाने वाला था। भ्रमण करते सम शिव-पार्वती भी वहां ठहर गए।
भगवान शिव की महिमा सुनकर एक बार ऋषियों ने सूत जी से कहा- हे सूत जी आपकी अमृतमयी वाणी और आशुतोष भगवान शिव की महिमा सुनकर तो हम परम आनन्दित हुए।
भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था।