नैनन में श्याम समाए गयो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।
नैनन में श्याम समाए गयो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।
लुट जाउंगी श्याम तेरी लटकन पे,
बिक जाउंगी लाल तेरी मटकन पे ।
मोरे कैल गरारे भाए गयो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ॥
नैनन में श्याम समाए गयो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।
मर जाउंगी काहन तेरी अधरन पे,
मिल जाउंगी तेरे नैनन पे ।
वो तो तिर्शी नज़र चलाए गयो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ॥
नैनन में श्याम समाए गयो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।
बलिहारी कुंवर तेरी अलकन पे,
तेरी बेसर की मोती छलकन पे ।
सपने में कहा पत्राए गायो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ॥
नैनन में श्याम समाए गयो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।
पागल को प्यारो वो नंदलाला,
दीवाना भाए है जाके सब ग्वाला ।
वो तो मधुर मधुर मुस्काये गायो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ॥
नैनन में श्याम समाए गयो,
मोहे प्रेम का रोग लगाए गयो ।
हिंदू धर्म में मां गंगा को केवल नदी नहीं, बल्कि एक दिव्य देवी के रूप में पूजा जाता है। साथ ही, उन्हें मोक्षदायिनी, पापों का नाश करने वाली और पवित्रता की प्रतीक भी माना गया है। मां गंगा से जुड़े कई पर्वों में से गंगा सप्तमी एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे गंगा जयंती भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में गंगा सप्तमी ‘जिसे गंगा जयंती भी कहा जाता है’ एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में श्रद्धा और भाव के साथ मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में गंगा नदी को केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक देवी के रूप में पूजा जाता है। मां गंगा को मोक्षदायिनी, पाप विनाशिनी और पुण्य प्रदान करने वाली माना गया है।
गंगा सप्तमी, जिसे गंगा जयंती या जाह्नवी सप्तमी भी कहा जाता है, इसे हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र पर्व माना जाता है। यह दिन मां गंगा के पुनः प्रकट होने की कथा से जुड़ा हुआ है, जब ऋषि जाह्नु ने मां गंगा को अपने कान से पुनः प्रकट किया था।