पर्वत से उतर कर माँ,
मेरे घर आ जाना,
मैं भी भगत तेरा,
मेरा मान बढ़ा जाना ॥
मैया तेरे बेटे को,
तेरा ही सहारा है,
जब जब कष्ट पड़ा,
मैंने तुम्हे ही पुकारा है,
अब देर करो ना मेरी माँ,
दौड़ी दौड़ी आ जाना,
पर्वत से उतर कर मां,
मेरे घर आ जाना ॥
ना सेवा तेरी जानू,
ना पूजा तेरी जानू,
मैं तो हूँ अज्ञानी माँ,
तेरी महिमा ना जानू,
मैं लाल तू मैया मेरी,
बस इतना ही जाना,
पर्वत से उतर कर मां,
मेरे घर आ जाना ॥
जब आओगी घर माँ,
मैं चरण पखारूँगा,
चरणों की धूल तेरी,
मैं माथे से लगाऊंगा,
मैं चरणों में शीश रखूं,
तुम हाथ बढ़ा जाना,
पर्वत से उतर कर मां,
मेरे घर आ जाना ॥
माँ रहता हूँ हर पल,
बस तेरे ही आधार,
ये मांग रहा है ‘विशाल’,
बस थोड़ा सा प्यार,
माँ अपने ‘महेश; को तू,
आ राह दिखा जाना,
पर्वत से उतर कर मां,
मेरे घर आ जाना ॥
पर्वत से उतर कर माँ,
मेरे घर आ जाना,
मैं भी भगत तेरा,
मेरा मान बढ़ा जाना ॥
पापमोचनी एकादशी व्रत पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और इसे पापों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत माना गया है। पापमोचनी एकादशी व्रत का वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है, जहां इस बात की चर्चा की गई है, की इस व्रत का पालन करने से मनुष्य अपने पिछले जन्मों के दोषों से भी मुक्त हो सकता है।
शास्त्रों के अनुसार, पापमोचनी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करने से भक्त के सभी पाप समाप्त होते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पापमोचनी एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना और व्रत करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति करता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चैत्र अमावस्य को बहुत महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है। यह हिंदू नववर्ष की शुरुआत के एक दिन पहले मनाई जाती है।