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पर्वत से उतर कर माँ, मेरे घर आ जाना - भजन (Parvat Se Utar Kar Maa Mere Ghar Aa Jana)

पर्वत से उतर कर माँ, मेरे घर आ जाना - भजन (Parvat Se Utar Kar Maa Mere Ghar Aa Jana)

पर्वत से उतर कर माँ,

मेरे घर आ जाना,

मैं भी भगत तेरा,

मेरा मान बढ़ा जाना ॥


मैया तेरे बेटे को,

तेरा ही सहारा है,

जब जब कष्ट पड़ा,

मैंने तुम्हे ही पुकारा है,

अब देर करो ना मेरी माँ,

दौड़ी दौड़ी आ जाना,

पर्वत से उतर कर मां,

मेरे घर आ जाना ॥


ना सेवा तेरी जानू,

ना पूजा तेरी जानू,

मैं तो हूँ अज्ञानी माँ,

तेरी महिमा ना जानू,

मैं लाल तू मैया मेरी,

बस इतना ही जाना,

पर्वत से उतर कर मां,

मेरे घर आ जाना ॥


जब आओगी घर माँ,

मैं चरण पखारूँगा,

चरणों की धूल तेरी,

मैं माथे से लगाऊंगा,

मैं चरणों में शीश रखूं,

तुम हाथ बढ़ा जाना,

पर्वत से उतर कर मां,

मेरे घर आ जाना ॥


माँ रहता हूँ हर पल,

बस तेरे ही आधार,

ये मांग रहा है ‘विशाल’,

बस थोड़ा सा प्यार,

माँ अपने ‘महेश; को तू,

आ राह दिखा जाना,

पर्वत से उतर कर मां,

मेरे घर आ जाना ॥


पर्वत से उतर कर माँ,

मेरे घर आ जाना,

मैं भी भगत तेरा,

मेरा मान बढ़ा जाना ॥


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श्री रुद्राष्टकम् (Shri Rudrashtakam)

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।

शिवाष्ट्कम्: जय शिवशंकर, जय गंगाधर.. पार्वती पति, हर हर शम्भो

जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशी सुख-सार हरे,

श्री शिवमहिम्न स्तोत्रम्

महिम्नः पारन्ते परमविदुषो यद्यसदृशी।
स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः॥

दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं

विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय
कणामृताय शशिशेखरधारणाय ।

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