रम गयी माँ मेरे रोम रोम में,
रम गयी माँ मेरे रोम रोम में
रम गयी माँ मेरे रोम रोम में,
रम गयी माँ मेरे रोम रोम में
मेरी सांसो में अम्बे के नाम की धारा बहती
इसीलिए तो मेरी जिह्वा हर समय ये कहती
॥ रम गयी माँ मेरे रोम रोम में ॥
जहा भी जाऊ, जिधर भी देखू
जहा भी जाऊं, जिधर भी देखू
अष्टभुजी माता के, ये रंग ऐसा जिसके
आगे और सभी रंग फीके भक्तो
और सभी रंग फीके भक्तो,
और सभी रंग फीके भक्तो
आंधी आये तूफ़ान आया,
पर ना भरोसा ना डोला
नाम दीवाना भक्त जानू,
यही झूम के बोला
॥ रम गयी माँ मेरे रोम रोम में ॥
दुःख सुख भक्तो, इस जीवन को
दुःख सुख भक्तो, इस जीवन को,
एक बराबर लागे
मंन में माँ की ज्योति जगी है,
इधर उधर क्यों भागे
इधर उधर क्यों भागे,
इधर उधर क्यों भागे
सपने में जब वैष्णों माँ ने,
अध्भुत रूप दिखाया
मस्ती में बावरे हो कर श्रीधर ने फरमाया
॥ रम गयी माँ मेरे रोम रोम में ॥
मंन चाहे अब, मंन चाहे अब
माँ के दर का मैं सेवक बनजाऊ
माँ के भक्तो की सेवा में सारी उम्र बिताओ
सारी उम्र बिताओ,
सारी उम्र बिताओ
छिन्न मस्तिका चिंता हरणी नैनन बीच समायी
मस्ताना हो भाई दास ने ये ही रत लगाईं
॥ रम गयी माँ मेरे रोम रोम में ॥
मेरी सांसो में अम्बे के नाम की धारा बहती
इसीलिए तो मेरी जिह्वा हर समय ये कहती
रम गयी माँ मेरे रोम रोम में
रम गयी माँ मेरे रोम रोम में
कार्तिक माह की पूर्णिमा को देव दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। इस वर्ष ये पर्व 15 नवंबर को मनाया जाएगा जो सुबह 6:20 बजे से शुरू होकर मध्यरात्रि 2:59 बजे समाप्त होगा।
हिंदू धर्म के अनुसार सप्ताह के सात दिन अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित है। इन मान्यताओं के अनुसार हम प्रत्येक दिन किसी-न-किसी देवी-देवता की पूजा आराधना करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं।
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सनातन परंपरा के अनुसार संसार में अब तक चार युग हुए हैं। इन चार युगों को सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलि युग कहा गया है। संसार का आरंभ सतयुग से हुआ। त्रेता युग में विभिन्न देवताओं ने विभिन्न अवतारों के साथ धर्म की रक्षा की। इसमें प्रमुख रूप से रामावतार में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना की और पापियों का नाश किया।