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राम को देखकर श्री जनक-नंदिनी, राम को देखकर श्री जनक-नंदिनी,
बाग़ में जा खड़ी की खड़ी रह गयीं,
राम देखें सिया, माँ सिया राम को,
चार अँखियाँ लड़ी की लड़ी रह गयीं,
राम को देखकर श्री जनक-नंदिनी
१) थे जनकपुर गए देखने के लिए, सारी सखियाँ झरोंखन से झाँकन लगीं,
देखते ही नजर मिल गयी दोनों की, जो जहाँ थी खड़ी की खड़ी रह गयीं,
राम को देखकर श्री जनक-नंदिनी
२) बोली है इक सखी राम को देखकर, रच दिए हैं विधाता ने जोड़ी सुघड़,
पर धनुष कैसें तोड़ेंगे वारे कुंवर, मन में शंका बनी की बनी रह गयी,
राम को देखकर श्री जनक-नंदिनी
३) बोली दूजी सखी छोटे देखन में हैं, पर चमत्कार इनका नहीं जानती,
एक ही बाण में ताड़का राक्षसी, उठ सकी न पड़ी की पड़ी रह गयी,
राम को देखकर श्री जनक-नंदिनी
राम को देखकर श्री जनक-नंदिनी,
बाग़ में जा खड़ी की खड़ी रह गयीं,
राम देखें सिया, माँ सिया राम को,
चार अँखियाँ लड़ी की लड़ी रह गयीं।।
बोलिये सियावर रामचंद्र की जय
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