शंकर का डमरू बाजे रे,
कैलाशपति शिव नाचे रे ॥
जटाजूट में नाचे गंगा,
शिव मस्तक पर नाथे चंदा,
नाचे वासुकी नीलकंठ पर,
नागेश्वर गल साजे रे,
शंकर का डमरू बाजे रे,
कैलाशपति शिव नाचे रे ॥
सीस मुकुट सोहे अति सुंदर,
नाच रहे कानन में कुंडल,
कंगन नूपुर चर्म-ओढ़नी,
भस्म दिगम्बर राजे रे,
शंकर का डमरू बाजे रे,
कैलाशपति शिव नाचे रे ॥
कर त्रिशूल कमंडल साजे,
धनुष-बाण कंधे पै नाचे,
बजे 'मधुप' मृदंग ढोल डफ,
शंख नगारा बाजे रे,
शंकर का डमरू बाजे रे,
कैलाशपति शिव नाचे रे ॥
तीनलौक डमरू जब बाजे,
डम डम डम डम की ध्यनि गाजे,
ब्रह्म नाचे, विष्णु नाचे,
अनहद का स्वर गाजे रे,
शंकर का डमरू बाजे रे,
कैलाशपति शिव नाचे रे ॥
सनातन धर्म में कालाष्टमी का विशेष महत्व है। इसे भगवान काल भैरव की उपासना का दिन माना जाता है। इस दिन व्रत रखने और विशेष पूजा करने से साधकों को शक्ति, सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त होती है।
मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित होता है, जो भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को जन्मे थे।
चेटीचंड, सिंधी समुदाय के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह पर्व चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है, जिसे सिंधी नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है।
झूलेलाल जयंती, जिसे चेटीचंड के नाम से भी जाना जाता है, सिंधी समुदाय के लिए एक पवित्र और महत्वपूर्ण दिन होता है। यह पर्व चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है, जो हिंदू नववर्ष के प्रारंभिक दिनों में आता है।