शिव अद्भुत रूप बनाए,
जब ब्याह रचाने आए ॥
भुत बेताल थे,
संग में चंडाल थे,
भुत बेताल थे,
संग में चंडाल थे,
कैसी बारात शंकर सजाए,
जब ब्याह रचाने आए ।
शिव अदभुत रूप बनाए ,
जब ब्याह रचाने आए ॥
लंगड़े-लूले भी थे,
अंधे काणे भी थे,
लंगड़े-लूले भी थे,
अंधे काणे भी थे,
शुक्र शनिचर को भी संग लाये,
जब ब्याह रचाने आए ।
शिव अदभुत रूप बनाए ,
जब ब्याह रचाने आए ॥
आए सब देवता,
पाए जब नेवता,
आए सब देवता,
पाए जब नेवता,
देवियों को भी संग में बुलाए,
जब ब्याह रचाने आए ।
शिव अदभुत रूप बनाए ,
जब ब्याह रचाने आए ॥
लोग डरने लगे,
और ये कहने लगे,
लोग डरने लगे,
और ये कहने लगे,
रूप कैसा गजब बनाए,
जब ब्याह रचाने आए ।
शिव अदभुत रूप बनाए ,
जब ब्याह रचाने आए ॥
बोलो सत्यम शिवम्,
है वही सुन्दरम,
बोलो सत्यम शिवम्,
है वही सुन्दरम,
गोरा के मन को भाए,
जब ब्याह रचाने आए ।
शिव अदभुत रूप बनाए ,
जब ब्याह रचाने आए ॥
शिव अद्भुत रूप बनाए ,
जब ब्याह रचाने आए ॥
ऋग्वेद
यजुर्वेद संस्कृत के दो शब्द यजुष् और वेद शब्द की संधि से बना हुआ शब्द है। यज का अर्थ होता है समर्पण जिसमें यज्ञ यानी हवन को समर्पण की क्रिया माना जाता है।
साम शब्द का अर्थ होता है गायन या गाना। सामवेद में गायन विद्या का भंडार है और माना जाता है कि यहीं से संगीत की उत्पत्ती हुई है। इस वेद में समस्त स्वर, ताल, लय, छंद, गति, मंत्र, स्वरचिकित्सा, राग, नृत्य मुद्रा और भाव के बारे में भी जानकारी मिलती है।
अथर्ववेद की रचना और उसके स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना चारों वेदों में सबसे आखिर में हुई थी।