शिव शम्भू सा निराला,
कोई देवता नहीं है,
जैसा भी है डमरू वाला,
कोई देवता नहीं है ॥
सर पे बसी है गंगा,
माथे पे चन्द्रमा है,
नंदी की है सवारी,
अर्धांगिनी उमा है,
गले सर्प की है माला,
कोई देवता नहीं है,
जैसा भी है डमरू वाला,
कोई देवता नहीं है ॥
अमृत की कामना से,
सब मथ रहे शिवसागर,
निकला है उससे विष जो,
सब पि गए हलाहल,
उस ज़हर को पिने वाला,
कोई देवता नहीं है,
जैसा भी है डमरू वाला,
कोई देवता नहीं है ॥
आशा हुई निराशा,
जाए तो किसके द्वारे,
तुझे छोड़ हे महेश्वर,
अब किसको हम पुकारे,
सूना है मन शिवाला,
कोई देवता नहीं है,
जैसा भी है डमरू वाला,
कोई देवता नहीं है ॥
शिव शम्भू सा निराला,
कोई देवता नहीं है,
जैसा भी है डमरू वाला,
कोई देवता नहीं है ॥
दिवाली का त्योहार भारतीय संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। पाचं दिन चलने वाले इस त्योहार में प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व है।
छठ पूजा के पावन पर्व पर व्रती महिलाएं नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाती हैं, जिसे पति की लंबी आयु, सम्मान और परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
छठ पूजा उत्तर भारत का प्रमुख त्योहार है। जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है। इस महापर्व में मिट्टी के हाथी और कोसी भराई की पवित्र परंपरा का विशेष महत्व है।
दीपावली का पर्व पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन बिहार और यूपी के गांवों में इसे मनाने का एक अनूठा तरीका है। यहां दीपावली की रात महिलाएं सूप पीटने की परंपरा निभाती हैं।