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सुनो सुनो एक कहानी सुनो

सुनो सुनो एक कहानी सुनो

सुनो सुनो, सुनो सुनो

सुनो सुनो एक कहानी सुनो

सुनो सुनो एक कहानी सुनो


ना राजा की ना रानी की।

ना आग हवा ना पानी की।

ना कृष्णा की ना राधा रानी की।

दूध छलकता है आँचल से हो ओ ओ।

दूध छलकता है आँचल से

आँख से बरसे पानी।

माँ की ममता की है ये कहानी।

सुनो सुनो, सुनो सुनो...


एक भक्त जो दीन हीन था।

कटरे में रहता था।

माँ के गुण गाता था।

माँ के चरण सदा कहता था।


सुनो सुनो सुनो सुनो


एक बार भैरव ने उससे कहा की कल आएंगे।

कई साधुओं सहित तुम्हारे घर खाना खाएंगे।

माँ के भक्त ने सोचा कैसे उनका आदर होगा।

बिन भोजन के साधुजनों का बड़ा निरादर होगा।


सुनो सुनो, सुनो सुनो


माता से विनती की उसने अन्न कहाँ से लाऊँ।

मैं तो खुद भूखा हूँ भोजन कैसे उन्हें खिलाऊँ।

माँ ने कहा तू चिंता मत कर कल तु उन्हें बुलाना।

उनके साथ ये सारा गाँव खाएगा तेरा खाना।


सुनो सुनो, सुनो सुनो


नमन किया उसने माता को आ गया घर बेचारा।

दूजे दिन क्या देखा उसने भरा है सब भंडारा।


सुनो सुनो, सुनो सुनो


उस भैरव ने जिसने ये सारा षडयंत्र रचाया।

कई साधुओं सहित जीमने उसके घर पे आया।

अति शुद्ध भोजन को देख के बोला माँस खिलाओ।

जाओ हमारे लिए कहीं से मदिरा लेकर आओ।


सुनो सुनो, सुनो सुनो


आग बबूला हो गया जब  देखा उसने भंडारा।

क्रोध से भरके जोर से उसने माता को ललकारा।

माँ आई तो उसने कस के माँ के हाथ को पकड़ा।

हाथ छुड़ाके भागी माता देख रहा था कटरा।


अपनी रक्षा की खातिर एक चमत्कार दिखलाया।

वो अस्थान छुपी जहां माता गर्भजून कहलाया।

नौ मास का छुपकर माँ ने वहीं समय गुजारा।

समय हुआ पूरा तब माँ ने भैरव को संहारा।

धड़ से सर को जुदा किया थी ज्वाला माँ के अंदर।

जहां गिरा सर भैरव का वहां बना है भैरव मंदिर।


सुनो सुनो, सुनो सुनो


अपरम्पार है माँ की महिमा जो कटरे में आये।

माँ के दर्शन करके फिर भैरव के मंदिर जाए।


सुनो सुनो सुनो सुनो,

सुनो सुनो सुनो सुनो,

सुनो सुनो एक कहानी सुनो


मां शेरावालिये।

मां ज्योतावालिये।

मां मेहरावालिये।

मां लाटावालिये।...


मां को जानो, मां को मानो मां ही सबकुछ है।

माता से बढ़कर न कुछ भी, मां ही सबकुछ है।...

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देव उठनी एकादशी के नाम की कथा

हमारा देश धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं का देश है। हमारी उत्सवप्रियता और उत्सव धर्मिता के सबसे श्रेष्ठतम उदाहरणों में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का अपना महत्व है।

देवउठनी एकादशी का महत्व, पूजा विधि

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देव शयनी एकादशी को भगवान नारायण विष्णु योग मुद्रा यानी शयन मुद्रा में चार माह के लिए चले जाते हैं।

एकादशी पर गन्ने के मंडप की कथा

देव उठनी एकादशी पर सनातन धर्म में तुलसी विवाह का बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु का विवाह गन्ने के मंडप में होता है। इसकी भी अलग ही मान्यता है और इससे संबंधित कथाएं भी हैं।

तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी के दिन से सभी मंगल कार्य आरंभ करने की परंपरा है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं और उनके जागते ही चातुर्मास भी समाप्त होता है।

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