सरलता, शीलता, शुचिता हों भूषण मेरे जीवन के।
सचाई, सादगी, श्रद्धा को मन साँचे में ढाला हो॥
॥ यही है प्रार्थना प्रभुवर...॥
मेरा वेदोक्त हो जीवन, बनूँ मैं धर्म-अनुरागी।
रहूँ आज्ञा में वेदों की, न हुक्मेवेद टाला हो॥
॥ यही है प्रार्थना प्रभुवर...॥
तेरी भक्ति में हे भगवन्, लगा दूँ अपना मैं तन-मन।
दिखावे के लिये हाथों में थैली हो, न माला हो॥
॥ यही है प्रार्थना प्रभुवर...॥
तजूँ सब खोटे कर्मों को, तजूँ दुर्वासनाओं को।
तेरे विज्ञान दीपक का मेरे मन में उजाला हो॥
॥ यही है प्रार्थना प्रभुवर...॥
पिला दे मोक्ष की घुट्टी, मरण-जीवन से हो छुट्टी।
विनय अन्तिम ये सेवक की अगर मंजूरे वाला हो॥
यही है प्रार्थना प्रभुवर! जीवन ये निराला हो।
परोपकारी, सदाचारी व लम्बी आयुवालो हो॥
हनुमान चालीसा न केवल एक भक्तिपूर्ण स्तुति है, बल्कि यह विश्वास, शक्ति और समर्पण का प्रतीक भी है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह चालीसा श्री हनुमान जी की महिमा का बखान है।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
जनक जननि पद कमल रज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥