मासिक शिवरात्रि पर अवश्य करें इस चालीसा का पाठ, बरसेगी भोलेनाथ की कृपा
हिंदू पंचाग में प्रत्येक महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी यानी 14वें दिन मासिक शिवरात्रि के मनाई जाती है। इस विशेष दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है। इस दिन महावरदान की भी प्राप्ति की जा सकती है। इस साल की आखिरी मासिक शिवरात्रि रविवार, 29 दिसंबर 2024 को मनाई जाएगी। मासिक शिवरात्रि के दिन शिव चालीसा का बहुत महत्व होता है. शिव चालीसा के सरल शब्दों से भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है। तो आइए इस आलेख में पूर्ण शिव चालीसा और इसके लाभ को विस्तार से जानते हैं।
जानिए शिव चालीसा पाठ करने के लाभ
ऐसा माना जाता है कि जो साधक इस दिन सच्चे भाव के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। उन्हें सुख और शांति की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जीवन कल्याण की ओर अग्रसर होता है। हालांकि, इसके लिए विधि पूर्वक पूजन के साथ इस दिन शिव चालीसा का पाठ भी परम आवश्यक माना जाता है।
क्या है शिव चालीसा के पाठ की विधि?
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें.
- अपना मुंह पूर्व दिशा में रखें और कुशा के आसन पर बैठें.
- पूजन में सफेद चंदन,चावल और कलावा रखें।
- साथ में धूप-दीप पीले फूलों की माला और सफेद आक के 11 फूल भी रखे और शुद्ध मिश्री को प्रसाद के लिए रखें.
- पाठ करने से पहले धूप दीप जलायें और एक लोटे में शुद्ध जल भरकर रखें.
- भगवान शिव की शिव चालिसा का तीन या पांच बार पाठ करें.
- शिव चालीसा का पाठ बोल बोलकर करें। क्योंकि, यह जितने लोगों को यह सुनाई देगा उनको भी लाभ होगा.
- पाठ पूरा हो जाने पर लोटे का जल सारे घर मे छिड़क दें।
- अंत में थोड़ा सा जल ग्रहण करें और प्रसाद के रूप में मिश्री खाएं और अन्य परिवारजनों में भी बाट दें।
शिव चालीसा कैसे देगी मनचाहा वरदान
- ब्रह्म मुहूर्त में एक सफेद आसन पर
- उत्तर पूर्व या पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठ जाएं।
- अब गाय के घी का दीपक जला कर शिव चालीसा का 11 बार पाठ करें।
- इसके साथ एक जल का पात्र रख लें और भगवान शिव को मिश्री का भोग लगाएं।
- अब एक बेलपत्र भी उल्टा करके शिवलिंग पर चढ़ा दें।
- अब मन में मनचाहे वरदान की इच्छा करें और यह पाठ 40 दिन लगातार करें।
पूर्ण शिव चालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ 20
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ 24
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट ते मोहि आन उबारो ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण ।।
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