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अजा एकादशी 2026 कब है

अजा एकादशी 2026 कब है

Aja Ekadashi 2026: सितंबर महीने में इस दिन मनाई जाएगी अजा एकादशी, जानिए इस पर्व की सही तिथि और महत्व

अजा एकादशी 2026 का महत्व

हिंदू पंचांग में एकादशी तिथि का विशेष धार्मिक महत्व माना गया है। इन्हीं में से एक है अजा एकादशी, जो भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आती है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत रखने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख, समृद्धि तथा मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। अजा एकादशी को अन्नदा एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि यह अन्न और धन की कमी को दूर करने वाली मानी जाती है। वर्ष 2026 में यह पावन व्रत सितम्बर माह में मनाया जाएगा।

अजा एकादशी 2026 की तिथि और पारण समय

पंचांग के अनुसार वर्ष 2026 में अजा एकादशी की तिथि निम्न प्रकार रहेगी:

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 06 सितम्बर 2026, शाम 07:29 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 07 सितम्बर 2026, शाम 05:04 बजे
  • पारण समय: 08 सितम्बर 2026, प्रातः 06:15 बजे से 08:42 बजे तक

धर्मशास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में ही करना शुभ माना जाता है। पारण समय का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है, अन्यथा व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।

अजा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि

अजा एकादशी का व्रत विधि विधान से करने पर विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसकी पूजा विधि इस प्रकार मानी जाती है:

  • एकादशी के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • घर के मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने घी का दीपक जलाएं।
  • फूल, फल और तुलसी दल अर्पित कर श्रद्धा पूर्वक पूजा करें।
  • पूजा के पश्चात विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  • दिनभर निराहार या निर्जल व्रत का पालन करें।
  • रात्रि में जागरण कर भगवान विष्णु का स्मरण करें।
  • द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर दान दक्षिणा दें और फिर स्वयं भोजन करें।

अजा एकादशी का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अजा एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो भक्त विधि विधान से इस व्रत का पालन करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं, उन्हें विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस एकादशी की कथा मात्र सुनने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है। यह व्रत विशेष रूप से दरिद्रता, कष्ट और मानसिक अशांति को दूर करने वाला माना गया है। माता लक्ष्मी की कृपा से घर में धन, अन्न और सुख समृद्धि का वास होता है।

अजा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा हरिश्चंद्र सत्य और धर्म के प्रतीक माने जाते थे। देवताओं ने उनकी सत्यनिष्ठा की परीक्षा लेने के लिए ऋषि विश्वामित्र के माध्यम से कठोर परीक्षा ली। राजपाट दान करने के बाद भी राजा से दक्षिणा मांगी गई, जिसके लिए उन्हें अपनी पत्नी, पुत्र और अंत में स्वयं को भी बेचना पड़ा। श्मशान में चांडाल के यहां कर वसूलने का कार्य करते हुए भी राजा ने सत्य और धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा।

एक दिन अजा एकादशी के व्रत के दौरान, श्मशान में राजा को अपनी ही पत्नी से पुत्र के दाह संस्कार हेतु कर लेना पड़ा। राजा की इस कठोर परीक्षा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। उनके पुत्र को जीवन मिला और विश्वामित्र ने उनका राजपाट लौटा दिया। यह कथा अजा एकादशी के व्रत की महिमा और सत्य की शक्ति को दर्शाती है।

अजा एकादशी क्यों कहलाती है अन्नदा एकादशी

अजा एकादशी को अन्नदा एकादशी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह व्रत अन्न और धन की कमी को दूर करने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से कभी अन्न का अभाव नहीं होता। गृहस्थ जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। इसी कारण यह एकादशी विशेष रूप से गृहस्थों के लिए अत्यंत फलदायी मानी जाती है।

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